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________________ श्रमण भ० महावीर के ५०वें पट्टधर आचार्य श्री विजय ऋषि जन्म दीक्षा आचार्य पद स्वर्गारोहण गृहवास पर्याय सामान्य साधु पर्याय आचार्य पर्याय पूर्ण संयम पर्याय पूर्ण आयु वीर नि० सं० १४८७ वीर नि० सं० १५०३ वीर नि० सं० १५२४ वीर नि० सं० १५८६ १६ वर्ष २१ वर्ष . ६५ वर्ष ८६ वर्ष १०२ वर्ष वीर निर्वारण सं० १५२४ में प्राचार्य श्री जयषेण के समाधिपूर्वक स्वर्गस्थ होने पर साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूपी चतुर्विध संघ ने मुनिश्रेष्ठ श्री विजय ऋषि को प्राचार्यपद के सर्वथा सुयोग्य समझ कर भ० महावीर के ५०वें पट्टधर आचार्य पद पर विधिवत् अधिष्ठित किया । Jain Education International आपके प्राचार्यकाल में भी आर्यधरा पर चारों ओर चैत्यवासी परम्परा, दिगम्बर भट्टारक परम्परा, श्वेताम्बर भट्टारक परम्परा अर्थात् श्वेताम्बर श्रीपूज्य परम्परा आदि द्रव्य परम्पराओं का जनमानस पर प्रभुत्व था । इस प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में भी आपने श्रमरण भ० महावीर के विशुद्ध मूल धर्मसंघ की मर्यादाओं की रक्षा करते हुए जीवन भर जैन धर्मसंघ की सेवा की । ६५ वर्ष तक आचार्य पद के कार्यभार का समीचीन रूप से निर्वहन करते हुए आपने वीर नि० सं० १५८९ में समाधिपूर्वक स्वर्गारोहण किया । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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