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________________ राजनैतिक स्थिति भारत पर गजनवी सुल्तान का प्राक्रमरण ईसा की आठवीं शताब्दी के चतुर्थ दशक में खलीफा हशाम द्वारा नियुक्त सिन्ध प्रदेश के हाकिम (प्रशासक) जुनैद की नवसारी के पास गुजरात के तत्कालीन राज्यपाल पुलकेशिन, राष्ट्रकूट वंशीय महाराजा दन्तिदुर्ग और कन्नोजपति प्रतिहार नागावलोक ( जैन धर्मावलम्बी ग्रामराज) के हाथों भीषण पराजय और अरब सेना की अपूरणीय क्षति के पश्चात् लगभग २४३ वर्ष तक भारत पर मुसलमानों का कोई उल्लेखनीय आक्रमण नहीं हुआ । सामान्य श्रतधर काल खण्ड- २ ] ई. सन् ६७७ तदनुसार वीर नि. सं. १५०४ में गजनी के सुल्तान सुबुक्तगीन ने पंजाब पर आक्रमण किया । उस समय सरहिंद से लमगान तक और मुल्तान से काश्मीर तक सीमावाले लाहोर राज्य पर जयपाल (भीम अथवा भीमपाल' का पुत्र) का शासन था और वह भटिंडा के दुर्ग में रहता था । लाहोर के राजा जयपाल ने आततायी सेना पर भीषण आक्रमण किया । घोर युद्ध के पश्चात् जब जयपाल ने देखा कि उसकी सेना को बहुत क्षति पहुंच रही है तो उसने सोना, हाथी और खिराज आदि देना स्वीकार कर सुबुक्तगीन के साथ संधि करली । उसने तत्काल ५० हाथी और बहुतसी स्वर्णमुद्राएं देकर सुबुक्तगीन से कहा कि शेष धन लाहोर जाकर उसके आदमियों को दे देगा । सुबुक्तगीन गजनवी का पुत्र महमूद भी उस सैनिक प्रयोजन में अपने पिता के साथ था । महमूद ने अपने पिता से कहा कि संधि न की जाय किन्तु विपुल सम्पत्ति के लालच और युद्ध के परिणाम की अनिश्चितता की आशंका से उसने संधि करली । राजा ने बन्धक के रूप में अपने आदमी सुल्तान के पास रखे और गौरी के सुल्तान के आदमियों और अपनी सेना के साथ वह लाहोर लौट आया । महाराजा जयपाल ने 'मन्त्ररणा के लिये राज्यसभा की प्रापद्कालीन बैठक ग्रामन्त्रित कर सभा के समक्ष वस्तु स्थिति रखी । राजसिंहासन के दक्षिण प्रार्श्वस्थ ब्राह्मण अधिकारियों ने सुल्तान के आदमियों को बन्दी बना लेने और शत्रु को कानी कौड़ी तक न देने का पुरजोर शब्दों में परामर्श दिया । राजा के वाम पार्श्वस्थ क्षत्रिय सामन्तों ने वचन पालन का परामर्श देते हुए कहा कि यदि वचन भंग किया गया तो सुबुक्तगीन सुनिश्चित रूपेण बदले की भावना से और भी अधिक भीषण वेग से प्राक्रमरण करेगा । जयपाल ने ब्राह्मण अधिकारियों के परामर्शानुसार सुल्तान के आदमियों को बन्दी बना लिया । [ ८६ सुबुक्तगीन के पास जब ये समाचार पहुँचे कि जयपाल ने उसके साथ धोखा किया है, तो वह एक शक्तिशाली सेना के साथ गजनी से प्रयाण कर लाहोर की ओर बढ़ा । जयपाल भी दिल्ली, कालंजर और कन्नोज के राजाओं के साथ बड़ी सेना ले ररणांगण में उपस्थित हुआ । सुबुक्तगीन की नई राजनीति और नवीन शस्त्रास्त्रों के परिणामस्वरूप जयपाल की सेना युद्धभूमि से भाग उठी । गजनी के १. फिरिश्ता में हितपाल नाम उपलब्ध होता है । ब्रिग, फिरिश्ता, जि. १, पृष्ठ १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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