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४९वें पट्टधर आचार्य जयसेन के आचार्यककाल की
- राजनैतिक स्थिति
- वीर नि० सं० १४६४ से १५२४ श्रमण भगवान् महावीर के ४६वें पट्टधर प्राचार्य जयसेन के वीर निर्वाण सम्वत् १४६४ से १५२४ तक के प्राचार्यकाल में राष्ट्रकूट वंश के बीसवें एवं अन्तिम राजा कक्क-कर्क द्वितीय नरेन्द्र नृप तुग के वीर निर्वाण सम्वत् १४८३ से १४६६ तक के शासनकाल में धारानगरी के परमारवंशी महाराजा मालवपति हर्षसियाक ने वीर निर्वाण सम्वत् १४६६ तदनुसार ईस्वी सन् १७२ अथवा विक्रम सम्वत् १०२६ में राष्ट्रकूट राज्य की राजधानी मान्यखेट पर, अपनी शक्तिशाली सेना का नेतृत्व करते हुए आक्रमण किया। भीषण युद्ध के पश्चात् राष्ट्रकूट वंश के राजा कर्क नरेन्द्र नृपर्तुंग की पराजय हुई। हर्ष ने समृद्ध मान्यखेट को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इस प्रकार वीर निर्वाण सम्वत् १४६६ में लगभग २५० वर्ष तक न्याय नीति पूर्वक शासन करने वाला जैनों का प्रबल संरक्षक शक्तिशाली राष्ट्रकूट साम्राज्य समाप्त हो गया। निम्नलिखित ऐतिहासिक गाथाएं एवं श्लोक राष्ट्रकूट वंशी साम्राज्य सूर्य के अस्तंगत होने के साक्षी हैं : .... कवि धनपाल ने अपनी कृति 'पाइयलच्छी नाममाला' की प्रशस्ति में लिखा है :
विक्कमकालस्स गए, अउणत्तीसुत्तरे सहस्संमि । मालवनरिंद धाडीए लूडिए मन्नखेडम्मि ।। धारानयरीए परिठिएण, मग्गे ठियाए प्रणवज्जे । कज्जे कपिट्ठ बहिणीए, सुन्दरी नाम विज्जाए। कइणो अंधजण किं वा कुसलत्ति पयाणमंतिया वण्णा ।
नामंमि जस्स कमसो, तेणेसा विरइया देसी । महाकवि पुष्पदन्त ने मान्यखेट के पतन पर निम्नलिखित श्लोक में अपने शोकोद्गार अभिव्यक्त किये हैं :
दीनानाथधनं सदा बहुजनं प्रोत्फुल्लवल्लीवनं, मान्याखेटपुरं पुरन्दरपुरीलीलाहरं सुन्दरम् । धारानाथ नरेन्द्र कोपशिखिना, दग्धं विदग्धप्रियम् । क्वेदानीं वसति करिष्यति पुनः श्री पुष्पदन्तः कविः ।।
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