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सैंतीसवें (३७) युगप्रधानाचार्य फल्गुमित्र
युगप्रधानाचार्य
जन्म
दीक्षा सामान्य साधुपर्याय युगप्रधानाचार्य काल गृहस्थ पर्याय सामान्य साधु पर्याय युगप्रधानाचार्य पर्याय स्वर्ग सर्वायु
वीर निर्वाण सम्वत् १४४४ वीर निर्वाण सम्वत् १४५८ वीर निर्वाण सम्वत् १४५८ से १४७१ वीर निर्वाण सम्वत् १४७१ से १५२०
१४ वर्ष १३ वर्ष
४६ वर्ष वीर निर्वाण सम्वत् १५२० ७६ वर्ष, सात मास, सात दिन
सैंतीसवें युगप्रधानाचार्य फल्गुमित्र का युग प्रधान काल 'युग प्रधान पट्टावली' तथा 'द्वितीयोदय युग प्रधान यन्त्रम्' में वीर निर्वाण सम्वत् १४७१ से १५२० तक का और तदनुसार आपका स्वर्गारोहण काल वीर निर्वाण सम्वत् १५२० माना गया है । 'तित्थोगाली पइण्णय' में स्पष्ट उल्लेख है कि वीर निर्वाण सम्वत् १५०० में ये आचार्य स्वर्गस्थ हो गये। तित्थोगालि पइन्नय की एतद्विषयक गाथा इस प्रकार है :
भरिणदो दसाण छेदो, पनरस सएहिं होइ वरिसाणं । समणम्मि फग्गुमित्ते, गोयम गोत्ते महासत्ते ।।८१८।।
अर्थात् वीर निर्वाण के १५०० वर्ष पश्चात् गौतम गोत्रीय महासत्वशाली श्रमण फल्गुमित्र के दिवंगत होने पर दशाश्रुत स्कन्ध का ह्रास (विच्छेद) कहा गया है।
एक ही कार्य के लिये इस गाथा के प्रथम चरण में 'भरिपदो' और द्वितीय चरण में 'होइ' इन दो क्रियावाचक शब्दों को देखते ही प्रत्येक भाषा विशेषज्ञ को यह तत्काल विदित हो जायगा कि द्वितीय चरण की शब्द योजना मौलिक नहीं, त्रुटिपूर्ण है । सम्भव है इस गाथा का पूर्वार्द्ध प्रारम्भ में इस प्रकार रहा हो:
भरिणदो दसाण छेदो, पनरस सएहि वीस अहिएहिं ।
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