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श्रमण भगवान महावीर के ४८वें पट्टधर उमण
ऋषि के समय की राजनैतिक घटनाएँ
श्रमण भगवान् महावीर के ४८वें पट्टधर श्री उमण ऋषि के प्राचार्यकाल (वीर निर्वाण सम्वत् १४७४ से १४६४) में कन्नर अकालवर्ष एवं निरुपम उपाधियों अथवा उपनामों से विभूषित कृष्ण नामक राष्ट्रकूट राजवंश के १६वें राजा ने जैन धर्मावलम्बियों पर अत्याचार करने वाले चोल राजवंश के महाराज राजादित्य चोल एवं कलचुरी राजा वल्लाल को पराजित कर जैनधर्म की, उस पर आये घोर संकटों से रक्षा की।
जब शैवपक्षपाती चोलराजा राजादित्य द्वारा जैनों पर किये जाने वाले अत्याचार अत्यधिक बढ़ने लगे तो सदा से जैनधर्म के प्रबल पक्षपाती रहे राष्ट्रकूट राजवंश के इस १९वें शक्तिशाली महाराजा कृष्ण ने अपनी चतुरंगिणी विशाल सेना का स्वयं नेतृत्व करते हुए जैन विरोधी चोलराज राजादित्य को दण्ड देने के लक्ष्य से उसके राज्य पर भयंकर आक्रमण किया। चोलों और राष्ट्रकूटों के बीच भीषण युद्ध में राष्ट्रकूटराज कृष्ण ने चोलराज राजादित्य को पराजित कर जैनों पर आये भीषण संकट से जैनधर्म की रक्षा की और जैन धर्म के इतिहास में, अतीत में पुष्यमित्र शुंग के अत्याचारों से जैनधर्म की रक्षा करने वाले कलिंगपति महामेघवाहन भिक्खुराय खारवेल के समान ही श्लाघनीय स्थान प्राप्त किया।
इसी प्रकार जब कलचुरी राजा वल्लाल ने शैवधर्म अंगीकार कर जैनों पर अत्याचार करने प्रारम्भ किये तो इसी राष्ट्रकूट वंशी महाराजा कृष्ण ने अपने साले गंगवंशी युवराज मारसिंह को अपनी शक्तिशाली सेना देकर वल्लाल पर आक्रमण करवा वल्लाल को युद्ध में पराजित कर जैनों को कलचुरी राज्य के अत्याचारों से मुक्ति दिलवाई।
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