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________________ वीर निर्वारण से देवद्धि-काल तक ] [ ३३ निकायों के आरम्भ समारम्भ द्वारा प्राणि हिंसा करते, इसी प्रकार दूसरों से प्रारम्भ समारम्भ करवाते, प्राणिहिंसा करवाने वाले तथा दूसरों द्वारा की जाने वाली हिंसा का अनुमोदन करते, वे धर्माध्यक्ष-धर्मोपदेशक अपनी आत्मा का तथा दूसरों का उद्धार नहीं कर सकते, अपितु वे सुदीर्घ काल तक संसार में अनेक प्रकार के दुःख भोगते हुए भटकते रहते हैं । इस तथ्य को सूत्र कृतांगसूत्र में एक रोचक रूपक द्वारा बड़े ही सुन्दर ढंग से समझाया गया है, जो इस प्रकार है :-- " एक बड़ी ही मनोहर पुष्करिणी है । वह अथाह जल और प्रगाध कीचड़ से भरी है । पुष्करिणी में प्रति सुन्दर और मनोहारी सुगन्धयुक्त अनेक श्वेत कमलपुष्प हैं । उस पुष्करिणी के बीचोंबीच एक बड़ा ही नयनाभिराम प्रियदर्शी, सुरभि एवं रसयुक्त पद्मवर पुण्डरीक है । पूर्व दिशा से एक पुरुष उस पुष्करिणी के पूर्वीय तट पर आता है । पुष्करिणी के मध्यभाग में स्थित श्रेष्ठ एवं सुन्दर श्वेत कमल को देखकर उसका मन लालायित हो उठता है । उस श्वेत कमल को लेने के दृढ़ संकल्प के साथ वह पूर्व दिशा से आया हुआ व्यक्ति पुष्करिणी में प्रवेश कर उस पद्मपुण्डरीक की ओर बढ़ता है । वह पुरुष पुण्डरीक तक नहीं पहुंच पाता, तट और पुण्डरीक के बीच में ही गहरे कीचड़ में फंस कर हिलने-डुलने में भी असमर्थ हो दुःखी हो जाता है । उसी समय दक्षिण दिशा से दूसरा पुरुष उस पुष्करिणी के तट पर प्राया । उसने पद्मवर पुण्डरीक और पूर्व दिशा से आये हुए पुरुष को कीचड़ में फंसा देखा, तो उसने कहा - "यह पुरुष अकुशल है, पद्मवर पुण्डरीक को लेना नहीं जानता, इसीलिये कीचड़ में फंस गया है । पर मैं कुशल- तत्वज्ञ हूं, श्रम करना जानता हूँ । मैं इस श्वेत कमल को अवश्य प्राप्त करूंगा।" अपने इस दृढ़ संकल्प के साथ वह भी पुष्करिणी में उतरा, पर तट तथा श्वेत कमल के बीच पहुंचते-पहुंचते वह भी प्रति गहन कीचड़ में बुरी तरह फंस गया और पश्चात्ताप करने लगा । तदनन्तर पश्चिम दिशा से तीसरा पुरुष पुष्करिणी के पश्चिमी तट पर आया । वह भी पंक में फंसे दोनों पुरुषों की आलोचना, ग्रात्मश्लाघा एवं पद्मवर पुण्डरीक को लेने का संकल्प करने के पश्चात् उस पुष्करिणी में प्रविष्ट हुआ । वह तीसरा पुरुष भी पुण्डरीक और तट के बीच उस पुष्करिणी के गहरे पंक में ऐसा फंसा कि एक डग भी आगे पीछे अथवा दायें, बायें हिलने-डुलने में असमर्थ हो गया । वह भी अपने किये पर पछताने लगा । " उसी समय चौथा पुरुष उत्तर दिशा से उस पुष्करिणी के उत्तरी तट पर पहुंचा। उसने भी पद्मवर पुण्डरीक को प्राप्त करने के प्रयास में मार्ग में ही कीचड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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