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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास--भाग ३
"तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया, इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण, मारणण पूयणाए जाइ जरा मरण मोयगाए," .........."कोहा, मारणा, माया, लोभा, हास्स, रती, अरती, सोय, वेदत्थी, जीव कामत्थ धम्म हेउसवसा, अवसा, अट्ठा अणट्ठाए हिंसंति मंद बुद्धी।"
इसमें स्पष्ट रूप से प्रभु ने कहा है-हिंसा चाहे अर्थ, काम या धर्म के लिये जन्म-जरा-मृत्यु से छुटकारा अर्थात् मोक्ष प्राप्ति के लिये की जाय, वह अहित और अबोधि की ही कारण है। वैदिक परम्परा ने जैसे यज्ञ की हिसा में दोष नहीं माना, जैन धर्म इस प्रकार धर्म कार्य में की गई हिंसा को निर्दोष नहीं मानता । जैन शास्त्र में संघ रक्षा के लिए किसी लब्धि की शक्ति का उपयोग करना पड़े तो उसके लिए भी आलोचना प्रतिक्रमण द्वारा शुद्धि आवश्यक मानी गई है ।
तीर्थंकर महाप्रभु द्वारा प्रदर्शित धर्म के इस स्व-पर कल्याणकारी स्वरूप को सर्वात्मना सर्वभावेन प्रगाढ़ श्रद्धा और निष्ठा के साथ हृदयंगम कर मुमुक्षु साधक पंच महाव्रत रूप श्रमण-धर्म (पूर्ण धर्म) में दीक्षित होते और उस समय सर्वप्रथम पहले महाव्रत की निम्नलिखित प्रतिज्ञा करते हैं :
"पढमं भंते महन्वयं पच्चक्खामि, सव्वं पारणाइवायं, से मुहुमं वा बायरं वा पडिक्कमामि निदामि गरिहामि अप्पारणं वोसिरामि ।''
अर्थात-हे भगवन ! प्रथम महाव्रत में मैं प्राणातिपात से सर्वथा निवत्त होता हूं। चाहे सूक्ष्म हो अथवा बादर, त्रस हो या स्थावर, किसी भी जीव का मैं न तो स्वयं प्राणातिपात-हनन करूंगा, न दूसरों से करवाऊंगा और न करने वाले का अनुमोदन ही करूगा। हे भगवन ! मैं जीवन-पर्यन्त तीन करण और तीन योग से मन, वचन और काया से, इस पाप से पीछे की ओर क्रमरण करता हूंपीछे हटता हूं। आत्मसाक्षी से इस पाप की निन्दा करता हूं, गुरु साक्षी से गर्हणा करता हूं तथा अपनी आत्मा को हिंसा के पाप से पृथक् करता हूं। .
हिंसा नहीं करने व न कराने का फल किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार का अल्प अथवा अधिक संताप पहुंचाने पर, उसकी हिंसा करने पर, उसे किस प्रकार का कष्ट होता है, उसको स्वानुभूति के रूप में अनुभव करने का उपदेश देते हुए प्रभु ने फरमाया है कि प्रत्येक व्यक्ति सदा-सर्वदा अपने अनुभव से इस बात को सोचे :
"यदि कोई व्यक्ति डंडे से, मुष्टिका से, अस्थि से, ढेले से, ईंट के टुकड़े से अथवा ठीकरे से मुझे मारता है, पीटता है, अंगुली आदि दिखाकर भय उत्पन्न
' भाचारांग सूत्र, श्र. २, प्र. १५ (भावना अध्ययन)
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