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________________ उपसंहार प्रभावक चरित्र के रचनाकार आचार्य प्रभाचन्द्र (वि. सं. १३३४) से लेकर वर्तमान काल तक के प्रायः सभी जैन इतिहास के विद्वान् लेखकों ने प्राचार्य देवद्धिगरिण क्षमाश्रमण से उत्तरवर्ती जैन इतिहास को अन्धकारपूर्ण बताया है । "जैन धर्म का मौलिक इतिहास" नामक प्रस्तुत ग्रन्थमाला के द्वितीय भाग में आर्य सुधर्मा स्वामी से लेकर आर्य देवद्धिगरिण क्षमाश्रमण के स्वर्गारोहण काल तक के १००० वर्ष के जैन इतिहास के आलेखन के अनन्तर अग्रेतर इतिहास के पालेखन के लिये सामग्री एकत्रित करने के प्रारम्भिक प्रयास में क्रमबद्ध प्रावश्यक ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध न हो सकने के कारण हमारा भी अनुमान था कि इस ग्रन्थमाला के तीसरे भाग में वीर नि. सं. २००० तक के जैन इतिहास का आलेखन सम्पन्न किया जा सकेगा। किन्तु दक्षिण के अनेक ग्रन्थागारों, मख्यतः मद्रास, धारवाड़, मूडबिद्री और मैसूर के सूविशाल ग्रन्थागारों में शोधकार्य प्रारम्भ करने के परिणामस्वरूप हमें जैन इतिहास की इतनी विपुल सामग्री उपलब्ध हो गई कि प्रस्तुत किये जा रहे "जैन धर्म का मौलिक इतिहास, भाग ३" में हम देवद्धि क्षमाश्रमण से उत्तरवर्ती काल का पूरे ५०० वर्ष का इतिहास भी नहीं दे पाये कि यह ग्रन्थ वहदाकार ग्रहण कर गया । इस कारण लोंकाशाह तक का जैन इतिहास तीसरे भाग में समाविष्ट कर देने के अपने पूर्व संकल्प के उपरान्त भी हमें तृतीय भाग के प्रालेखन-मुद्रण को यहीं समाप्त करना पड़ रहा है। इससे आगे का, वीर नि. सं. १४७५ से २००० तक का, जैन इतिहास इस ग्रन्थ माला के प्रागे के चौथे भाग में समाविष्ट करने का प्रयास किया जायगा। श्रमण भगवान महावीर के विभिन्न इकाइयों में विभक्त सभी धर्मसंघों के धर्माचार्यों, श्रमणों, उपासकों, अनुयायियों एवं प्रशंसकों से हमारा विनम्र निवेदन है कि वे इस ग्रन्थ को मनोयोगपूर्वक आद्योपान्त पढ़ें और निष्पक्ष भाव से एवं निर्मल मन से सत्य का साक्षात्कार करें। ____ इस इतिहास के पालेखन का मुख्य लक्ष्य जैन धर्म के मूल आगमानुसारी आध्यात्मिक रूप को उजागर करना रहा है । इसे उजागर करते हुए इतिहास ग्रन्थमाला के प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय भाग में भी हमने बड़ी सावधानी के साथ बराबर यह ध्यान रखा है कि किसी भी जैन बन्धु, जैनाचार्य अथवा किसी भी सम्प्रदाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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