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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
भट्टारक, यापनीय, चैत्यवासी और श्रीपूज्यों के अनुयायी बनने लगे । शनैः शनैः इन चारों संघों का देश के कोने कोने में वर्चस्व छा गया और विशुद्ध श्रमणाचार की परिपोषिका (श्रमण भगवान् महावीर की) मूल परम्परा स्वल्पतोया नदी के समान क्षीण और अन्तः प्रवाहिनी गौण परम्परा मात्र रह गई । इन नवोदित शक्तिशाली द्रव्य परम्पराओं की गतिविधियों का कार्यकलापों का-घटनाचक्रों का व्यौरालेखा-जोखा उक्त अवधि में प्रचुर परिमारण में भी हुआ और सुरक्षित भी रहा । इसके विपरीत अन्तः प्रवाहिनी, उक्त अवधि में गौण बनी, मूल परम्परा का लेखा-जोखा अतिस्वल्प मात्रा में ही उपलब्ध रह गया।
श्रमण परम्परा के वास्तविक स्वरूप का संक्षिप्त परिचय
"दुरणु चरो मग्गो वीराणं अनियट्टि गामीणं" ऐसा आचारांग सूत्र में प्रभु महावीर द्वारा कथित तथा "अरण पुवेण महाघोरं कासवेरणं पवेइया" इस सूत्र कृतांग में वरिणत गाथा के अनुसार - भगवान् काश्यप-महावीर द्वारा बताया हुआ मार्ग अपूर्व एवं घोर है।
असिधारा पर गमन तुल्य श्रमण धर्म का जीवन पर्यन्त विशुद्धरूपेण पालन करना वस्तुत: अनुपम साहसी सिंह तुल्य पराक्रम वाले नरसिंहों का काम है न कि कापुरुषों का।
जैन धर्म संसार के समस्त प्राणिवर्ग का परम हितैषी और सच्ची शान्ति का मार्ग बताने वाला है। जैन धर्म का शाब्दिक अर्थ है, जिनदेव द्वारा प्ररूपित धर्म । जिन का अर्थ है राग-द्वेष को जीतने वाले और धर्म का अर्थ है जन्म जरा, मृत्यु के अथाह दुःखसागर में डूबते हए प्राणी को धारण करने वाला, बचाने वाला। तात्पर्य यह है कि वीतराग, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, घट-घट के अन्तर्यामी जिनेन्द्र देव द्वारा प्ररूपित धर्म का नाम है-- जैन धर्म ।
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रसकाय-इन षड्जीवनिकायप्राणीवर्ग की हितकामना, कल्यारण कामना करने वाले इस धर्म का भी उतना ही विराट् उतना ही महान् होना स्वाभाविक है। जो धर्म जितना विराट् होगा, उसका स्वरूप भी वस्तुतः उतना ही विराट् उतना ही महान् होगा, इसमें कोई दो राय नहीं। ऐसी स्थिति में विराट जैन धर्म के विराट् स्वरूप का यथावत् रूपेण दिग्दर्शन कराना भी वस्तुतः उतना ही महत्वपूर्ण होगा। अतः यहां जैन धर्म के स्वरूप की एक झलक मात्र प्रस्तुत की जा रही है ।
अगाध करुणासिन्धु जगदेकबन्धु जिनेन्द्र प्रभु महावीर ने अपनी अमोघ दिव्य वाणी द्वारा धर्म का सच्चा स्वरूप एवं धर्म की मूल प्राचार परम्परा किस प्रकार बताई है, इसका थोड़ा उल्लेख करना इस समय उपयुक्त होगा ताकि
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