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________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ] [ ७९३ ईसा की 8वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध दक्षिरण में पल्लवों और पांड्यों के बीच संघर्ष का युग रहा । ई. सन् ८८० में श्रीमाड़ श्रीबल्लभ के उत्तराधिकारी पांड्यराजा वरगुणवर्मन् (द्वितीय) और पल्लवराज नृपतु गवर्मन के पुत्र अपराजित के बीच कुम्बकोनम के समीप पुड़मवियम में भयंकर युद्ध हुआ । चोल राजा श्रादित्य प्रथम और गंगराजा पृथ्वीपति प्रथम भी इस युद्ध में अपनी सेनाओं के साथ पल्लवराज पराजित के पक्षधर बनकर सम्मिलित हुए। इस युद्ध में यद्यपि गंग राजा पृथ्वीपति प्रथम रणांगण में लड़ता - लड़ता मृत्यु को प्राप्त हुआ किन्तु पाण्ड्यराज वरगुणवर्मन बुरी तरह पराजित हुआ । अन्ततोगत्वा चोलराज आदित्य प्रथम ने पल्लव राज्य पर भी आक्रमण कर दिया और तोंडइमण्डम के युद्ध में पल्लवराज अपराजित को पराजित कर दिया । आदित्य छलांग मार कर अपराजित के हाथी पर चढ़ गया और एक ही भरपूर प्रहार से उसका प्राणान्त कर दिया । इस युद्ध में विजय से प्रायः पूरा का पूरा पल्लव राज्य चोल राज्य के अन्तर्गत आ गया । आदित्य ने कौंगू देश पर भी अपना श्राधिपत्य स्थापित कर लिया और इस प्रकार पुनः एक शक्तिशाली चोल राज्य का गठन करने में प्रादित्य सफल हुआ । ई० सन् ६०७ में आदित्य के पश्चात् उसका पुत्र परांतक चोल राज्य के सिंहासन पर बैठा । आदित्य के एक पुत्र का नाम कन्नरदेव था, जो राष्ट्रकूटवंशीय राजा कृष्ण (द्वितीय) का दौहित्र था । अपने दौहित्र को चोल राजसिंहासन से वंचित रखे जाने से क्रुद्ध होकर कृष्ण ने बांगों और वैदुम्ब शासकों की सहायता से चोल राज्य पर आक्रमण कर दिया । उस युद्ध में परान्तक की विजय हुई किन्तु अन्ततोगत्वा इन तीन राजशक्तियों के साथ परान्तक की शत्रुता वस्तुतः परान्तक के लिये घातक सिद्ध हुई । जैसा कि आगे बताया जायगा इस शत्रुता के परिणाम - स्वरूप राष्ट्रकूटों ने चोलराज्य पर आक्रमण किया और उस युद्ध में गंगराज बतुग ने परान्तक के बड़े पुत्र राजादित्य को युद्ध में मार डाला । गुजरात में एक नवीन सोलंकी राज्यशक्ति का उदय विक्रम की दसवीं शताब्दी के अन्तिम समय में लगभग विक्रम सं० ६६८ ( ई० सन् ६४१-४२, वीर नि० सं० १४६८) में एक नवीन सोलंकी ( चालुक्य ) राजशक्ति का उदय हुआ जिसने लगभग ३०० वर्षों तक गुजरात पर और समय समय पर अनेक बार गुजरात के सीमावर्ती विशाल भू-भाग पर भी शासन किया । लगभग ३०० वर्ष के इस राजवंश के शासनकाल में गुजरात प्रदेश की प्रार्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक सभी दृष्टियों से सर्वतोमुखी उल्लेखनीय प्रगति हुई । उस सोलंकी राजवंश का आदि पुरुष और सोलंकी राज्य शक्ति का संस्थापक मूलराज सोलंकी था । मूलराज सोलंकी के सम्बन्ध में जो प्रामाणिक एवं ऐतिहासिक आदि सभी दृष्टियों से विश्वसनीय विवरण उपलब्ध होते हैं, उनका सारांश इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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