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________________ वीर नि० सं० १४०० से १४७१ की अवधि में भ० महावीर के ४५ वें से ४७ वें पट्टधर और ३६ वें युगप्रधान के समय की राजनैतिक परिस्थिति उपरिलिखित अवधि के प्रारम्भकाल में महान् शक्तिशाली राष्ट्रकूटवंशीय राजा अमोघ वर्ष के शासनकाल का ५६वां वर्ष था। जैसा कि पहले बताया जा चुका है वीर नि० सं० १४०२ में अमोघवर्ष ने अपने विशाल साम्राज्य का स्वेच्छापूर्वक परित्याग कर कृष्ण द्वितीय का राज्याभिषेक किया और अपना शेष जीवन जैन श्रमणों की सेवा में रहते हुए प्रात्मसाधना में व्यतीत किया। इतिहास के यशस्वी विशिष्ट विद्वान् डा० के० ए० नीलकण्ठ शास्त्री ने अमोघवर्ष का शासनकाल ई० सन् ८१४ से ८८० तक अनुमानित किया है।' अमोघवर्ष के पश्चात् कृष्ण द्वितीय का राष्ट्रकूट राज्य पर ई० सन् ८७५ से ९१२ तक शासन रहा । इसका पूर्वी चालुक्यों के साथ अनेक वर्षों तक संघर्ष चलता रहा। ___ यह राजा बड़ा ही उदार और जिनशासन-प्रभावक था । बन्दलिके वसति के प्रवेश द्वार के पाषाण पर उकित शिलालेख में इसकी उदारता का ज्वलंत उदाहरण प्राज भी विद्यमान है । उस अभिलेख में उल्लेख है कि नागरखंड सत्तर के अपने सामन्त नालगुण्ड सत्तरस नागार्जुन की मृत्यु हो जाने पर (संभवतः उसके कोई सन्तति न होने पर भी) अपने स्व० सामन्त की पत्नी जक्कियब्बे को प्रावुतवूर मोर नागरखण्ड सत्तर का राज्य प्रदान किया । उस महिलारत्न जक्कियब्बे ने भी अनेक वर्षों तक सुचारू रूप से शासन संचालन कर अपनी अद्भुत प्रशासनिक योग्यता का प्रदर्शन किया । अन्त में जक्कियब्बे ने संलेखना-संथारा स्वीकार कर जिनेश्वर भगवान् के स्मरण में लो लगाये हुए पंडितमरण पूर्वक अपने जीवन को सफल किया। कृष्ण द्वितीय के पश्चात् ई० सन् ११२ से. ९४५ (डा० के० ए० नीलकण्ठ शास्त्री के अनुमानानुसार ई० सन् ६३५) की अवधि के बीच गोविन्द चतुर्थ, इन्द्र, गोविन्द-सूवर्ण-वर्ष वल्लभ, कृष्ण, प्रमोघवर्ष और खोड्रिग इन ६ राष्ट्रकूटवंशीय राजामों का राज्य रहा । इन ६ राजारों में से प्रायः सभी का प्रति स्वल्पावधि तक ही राज्य रहा। ' दक्षिण भारत का इतिहास, पृ० २३५ २ जन शिलालेख संग्रह, भाग २, लेख संख्या १४०, पृष्ठ १६२ से १६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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