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________________ ७८८ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास--भाग ३ प्रज्जणन्दि ने शेट्टिपोड़वु की गुफाओं और उस पर्वत की चोटी पर "पेच्छिपल्लम"-(बोलता हुआ बिल) नामक प्राचीन स्थान पर भगवान् पार्श्वनाथ और अन्य तीर्थंकरों की मूर्तियां उकित करवाईं। यहां चट्टान को काट कर प्रज्जवन्दि की माता 'गुणमत्तियार' की भी मूर्ति बनी हुई है। इन सब के अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों के अनेक पहाड़ों पर अज्जणन्दि ने तीर्थंकरों, उनके यक्षों आदि की मूर्तियां बनवाई।। मदुरा ताल्लुक के क्लिक्कुड़ी नामक ग्राम के पास पर्वत पर एक प्राचीन गुफा है । उस गुफा को दृष्टि पसार कर देखने मात्र से ही ऐसा प्रतीत होने लगता है कि वस्तुतः वह गुफा बड़े लम्बे समय तक जैन श्रमणों की विश्रामस्थली अथवा साधनास्थली रही है। इस गुफा का नाम है "शेट्रिपोड़व" जिसका हिन्दी रूपान्तर होता है-"प्रमुख व्यापारियों की खोह-गुहा अथवा गुफा।" इस गुफा में यत्र-तत्र जैन संस्कृति के पुरातात्विक स्मारक यत्र-तत्र दृष्टिगोचर होते हैं। इस गुफा का प्रवेशद्वार महराबदार बना हुआ है । इस गुफा में तीन जैनाचार्यों को मूर्तियां चट्टानों को काट कर बनाई गई हैं। प्राचार्यों की इन तीन मूर्तियों के अतिरिक्त दो मूर्तियां भगवान महावीर की यक्षिणी सिद्धायिका देवी की प्रतीत होती हैं । सिद्धायिका देवी की इन मूर्तियों में से एक मूर्ति युद्ध की देवी के.रूप में और दूसरी शान्ति की देवी के रूप में उट्ट कित की गई है। सिद्धायिका यक्षिणी को जिस मूर्ति में युद्ध की देवी का स्वरूप दिया गया है, वह स्वरूप बड़ा ही हृदयग्राही अथवा रुचिकर है। यह चतुर्भुजाओं वाली युद्ध की देवी सिंह पर आरूढ़ है । उसके दक्षिरण हाथ में प्रत्यंचा चढ़ा धनुष और वाम हस्त में तीर है। शेष दो हाथों में शस्त्र हैं। सिंह ने एक हाथी पर आक्रमण किया है जिस पर कि एक महिला एक हाथ में कृपाण और दूसरे हाथ में ढाल लिये बैठी है। शान्ति की देवी सिंहासन पर बैठी है। उसके दक्षिण हस्त में फल है और उसका वाम हस्त सिंहासन पर रखा हुआ है। इन मूर्तियों का निर्माण किसने करवाया, इस सम्बन्ध में प्रमाणाभाव में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। जैनाचार्यों की मूर्तियों के समीप युद्ध की देवी और शान्ति की देवी इन दोनों देवियों की मूर्तियों को उटैंकित करवाने का क्या उद्देश्य रहा होगा, इस सम्बन्ध में सुनिश्चित रूप से कहना तो सम्भव नहीं। पर अनुमान किया जाता है कि जैन धर्मावलम्बियों में संकटापन्न स्थिति में आक्रान्ताओं एवं अत्याचारियों से अपनी रक्षा के लिये युद्ध देवी स्वरूपा सिद्धायिका को और शान्ति-समृद्धिपूर्ण उत्कर्षकाल में शान्ति की स्वरूपा सिद्धायिका देवी को अपना आदर्श मान कर बड़े साहस एवं धैर्य के साथ कर्तव्य का पालन करते रहने की प्रेरणा देना रहा हो। __उपरलिखित कोंगर पुलियमंगलम् ग्राम के नाम को देखते हुए ऐसा विचार आता है कि इस ग्राम का वास्तविक नाम कोंगर आपुलियमंगलम् तो नहीं रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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