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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास---भाग ३ __सूराचार्य ने उत्तर दिया :-- “मुनि राजा की स्तुति किस कारण और क्यों करने लगा ?"
राजा भीम ने एक हाथी पांच सौ अश्वारोही सैनिक और एक हजार पदाति सैनिकों के साथ सूराचार्य को विदा दी।
राजा भोज के प्रधान पुरुषों और राजा भीम के सैनिकों के साथ विहार करते हुए सूराचार्य कुछ ही दिनों में गुजरात और मालव की सीमा सन्धि पर पहुंचे। राजा के प्रधान पुरुषों ने जब अपने स्वामी राजा भोज को सराचार्य के आगमन की सूचना दी तो राजा भोज अपने प्रधानामात्यों और दलबल के साथ स्वयं सूराचार्य के स्वागतार्थ मालव सीमा पर उपस्थित हुआ।
श्रमणाचार के अनुसार किसी भी साध का गज आदि पर बैठना निषिद्ध है । तथापि राजामात्यों के आग्रह पर प्रायश्चित्त कर लेने के संकल्प के साथ सूराचार्य हाथी पर बैठकर मालव राज की सीमा की ओर बढे ।
एक दूसरे के सम्मुख होने पर गजारूढ राजा भोज ने सूराचार्य को, और सराचार्य ने राजा भोज को देखा और वे दोनों हाथी से उतर पड़े। दोनों परस्पर भाई-भाई की तरह गले मिले । राजा ने पूरे सम्मान और प्रादर के साथ सूराचार्य का नगर प्रवेश करवाया।
धारानगरी के मध्यभाग में एक अति विशाल सुन्दर जैन विहार था । सूराचार्य उस विहार में गए और राजा भोज अपने राजभवन में गये ।
जैन विहार में स्थित मन्दिर में प्रतिमा के दर्शन करने के पश्चात् सूराचार्य वहां के अधिष्ठाता प्राचार्य बूटसरस्वती के विद्यालय-कक्ष में गये, जहां कि चारों
ओर ज्ञान का प्रकाश होते रहने के कारण अज्ञानान्धकार का कहीं अरणमात्र भी दिखाई नहीं दे रहा था और जो शिक्षार्थियों के स्वाध्यायघोष से गुजरित हो रहा था।
___ सूराचार्य को देखते ही बूट सरस्वती ने सम्मुख जाकर प्रणाम करते हुए उनका स्वागत सत्कार किया और आश्रम के शिष्यों ने भी स्वागत घोषों से गगन को गुजरित करते हुए उनके प्रति अपनी असीम श्रद्धा भक्ति प्रकट की। तदनन्तर शुद्ध एषणीय आहार-पान देकर उन्हें भक्तिपूर्वक भोजन कराया।
उन दिनों राजा भोज के मन में सभी धर्मों में समन्वय स्थापित करने की एक अदम्य लहर उठी हुई थी। उसने अपने नगर के छहों ही दर्शनों के सभी प्रमखों को बुलवाकर कहा :-."आप लोग ही वस्तुतः सब लोगों को भ्रान्ति में डाल रहे हो । आपके एक दूसरे से भिन्न प्राचार-विचार इस बात के प्रमाण हैं। इसलिये
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