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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ]
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एक दिन द्रोणाचार्य ने कतिपय गीतार्थ युवा साधुओं के साथ सूराचार्य को धारानगरी जाने की अनुज्ञा प्रदान की । गुरु द्रोण ने अपने प्रिय शिष्य सूर को अपने वक्षस्थल से लगाते हुए सुदूर प्रदेश की यात्रा के लिये विदाई देते समय जो शिक्षा दी जाती है वह शिक्षा दी। उन्होंने कहा :--"वत्स ! सदा सुदूरस्थ क्षेत्रों के विहार के समय सजग रहना । तुम में महापुरुष के योग्य सब गुरण हैं। तुमने इन्द्रियों को भी वश में किया है। किन्तु सदा इस बात का ध्यान रखना कि युवावस्था सदा सबके लिये अविश्वसनीय होती है।"
___ गुरु के उपदेशों को शिरोधार्य कर और उनकी अनुज्ञा प्राप्त कर सूराचार्य भीम भूपाल की राज सभा में उनसे विदा लेने गये। राजा ने रत्नजटित सिंहासन पर बिठाकर सूराचार्य का बड़ा सम्मान किया। सयोग ऐसा हुआ कि उसी समय मालव राज भोज के प्रधान पुरुष राजा भीम की सभा में उपस्थित हुए और निवेदन किया--"महाराज भोज आपके यहां के विद्वानों की अप्रतिम प्रतिभा से अतीव प्रसन्न हैं । वे आपके यहां के विद्वानों को देखने के लिये बड़े उत्कंठित हैं । अतः कृपा कर आप अपने यहां के विद्वानों को राजा भोज की सभा में हमारे साथ धारानगरी भेजें।"
राजा भीम ने कहा :--"ये मेरे ममेरे भाई महा विद्वान् हैं । किन्तु ये मुझे प्राणों से भी प्रिय हैं । इसलिये इन्हें दूरस्थ देश में भेजने के लिये मेरा अन्तर्मन साक्षी नहीं देता । फिर भी यदि आपके स्वामी मेरी ही तरह इनका आदर सत्कार करने, स्वयं इनके समक्ष प्राकर इनका नगर प्रवेश आदि करवाने और इन्हें सम्मानपूर्वक रखने का प्राश्वासन दें तो मैं इन्हें आपके यहां भेज सकता हूं।"
"राजा भोज की ओर से आपके यहां के विद्वानों का पूर्ण रूपेण सुचारु रूप से सम्मान किया जायगा और जैसा आपने चाहा है वैसा ही किया जायगा"इस प्रकार आश्वासन भोज के उन प्रधान पुरुषों द्वारा दिलाये जाने पर राजा भीम ने अपनी ओर से सूराचार्य को मालव देश जाने की स्वीकृति प्रदान की।
सराचार्य ने विचार किया :--'मेरे गुरुदेव की कृपा से आज यह शुभ संयोग अनायास ही मिला है कि इधर मैं जाने को उद्यत था और उधर राजा भोज का निमन्त्रण भी प्राप्त हो गया। उन्होंने राजा भीम से कहा :--"राजा भोज के यहां की कविता को मैंने देखा और उसका उत्तर भी दिया और मैं अब आपसे विदा होकर स्वयं राजा भोज के पास जा रहा हूं। यह संसार बड़ा विचित्र है। हम समताधारी साधुनों के लिये कहीं कोई कौतुक एवं भय की बात नहीं होती। मुझे कहीं किसी प्रकार का कष्ट नहीं होगा । आप चिन्ता न करें।"
राजा भीम ने सूराचार्य से पूछा-"आप वहां राजा भोज की स्तुति किस प्रकार करेंगे ?"
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