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________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ] [ ७६५ अर्थात् -हे प्रस्तर-स्तम्भ ! स्वर्ण कंकणादि प्राभरणों के कमनीय संसर्ग से सुकोमल हुई इस नवयौवना मृगनयनी के बाहुयुगल का आलिंगन प्राप्त हो जाने के पश्चात भी न तो तुम में कोई स्वेदकण उत्पन्न हुआ है, न तुम किंचित्मात्र भी चलायमान हुए हो और न तुम्हारे अंग में किसी प्रकार का कम्पन ही उत्पन्न हुआ है। यह सब देखकर मेरी तो यही समझ में आया है कि तुम पत्थर-हृदय हो-और अरे हां, तुम ! वस्तुतः पत्थर से ही तो निर्मित हो । इस पर सहस्रकंठों से प्रकट हुए सूराचार्य के जयघोषों से एवं उनके साधुवादों से गोविन्दसूरि के चैत्य की नाट्यशाला और गगनांगरण सभी पुनः पुनः प्रतिध्वनित हो उठे। राजा भीम के अमात्य भी वहां उपस्थित थे। उन अमात्यों को बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने तत्काल राजा को जाकर निवेदन किया कि गोविन्दाचार्य के पास एक अद्भुत प्रतिभाशाली ऐसा महाकवि है जो राजा भोज की प्रार्या का समुचित प्रत्युत्तर देने में सर्वथा समर्थ है। राजा ने कहा- "अरे ! गोविन्दाचार्य तो हमारे साथ बड़ा ही सौहार्द्र रखने वाले सरि हैं। उस कवि का सम्मान करके उसे और उसके गुरु को यहां लाओ।" गोविन्द सरि के साथ सूराचार्य को देखकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला- "अरे ये तो मेरे मामा के पुत्र हैं अत: मेरे ये लघुभ्राता ही हैं। ये असम्भव को भी सम्भव करने में सर्वथा सक्षम हैं।" सराचार्य प्राशीर्वाद प्रदान के पश्चात् राजा द्वारा प्रदत्त प्रासन पर बैठ गये । रान सभा के विद्वानों ने राजा भोज द्वारा उसके प्रधानों के साथ भेजी हुई गाथा सूराचार्य को सुनाई। उस गाथा को सुनते ही–“इसके उत्तर में विलम्ब की आवश्यकता ही क्या है, यह तो बड़ा ही पुण्योदय का प्रसंग है"-यह कहते हुए सूराचार्य ने निम्नलिखित गाथा का घनरव गम्भीर स्वर में उच्चारण किया : अंधयसुयाणकालो भीमो पुहवीइ निम्मिनो विहिणा। जेण सयं पि न गणियं का गणणा तुज्झ इक्कस्स ।। ३३ ।। (प्रभावक चरित्र पृष्ठ १५३) अर्थात् अंधे धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों के लिये काल के समान भीम का निर्माण विधि ने इस पृथ्वी पर कर दिया है, जिसने धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों की भी अवहेलना अवमानना करते हुए उनका प्राणांत कर दिया। उस भीम के समक्ष तेरी अकेले की क्या गिनती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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