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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
आदि दानों का आदान और लोक सम्पर्क, राज सम्पर्क आदि अशास्त्रीय शिथिलाचार का पुट देकर परम्परागत मूल श्रमणाचार में आमूलचूल परिवर्तन किया और जिन परम्पराओं के प्रचार-प्रसार तथा प्राबल्य के परिणामस्वरूप जैन धर्म का परम्परागत महान मूलस्वरूप धमिल हो गया, विशुद्ध शास्त्रीय श्रमणाचार का पालन करने वाली मूल श्रमण परम्परा का प्रवाह अत्यन्त क्षीण मन्द और गौरण रूप में अवशिष्ट रह गया उन चैत्य वासी, भट्टारक, यापनीय आदि परम्पराओं का यथास्थान संक्षेप में परिचय देने का प्रयास किया जावेगा । जैन धर्म के मूल स्वरूप एवं शास्त्र सम्मत विशुद्ध श्रमण परम्परा के स्वरूप में आमूलचूल परिवर्तन करने वाली उन सभी परम्पराओं का परिचय प्रस्तुत करने से पूर्व भगवान् महावीर की श्रमण परम्परा के वास्तविक स्वरूप का संक्षिप्त परिचय करवाना परमावश्यक समझकर उसका परिचय यहां प्रस्तुत किया जा रहा है ।
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