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________________ ७५४ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३ कि राजा भोज ने गुप्त रूप से धनपाल की हत्या कर देने का संकल्प कर लिया । उसके विद्याबल ने उसके प्राणों की रक्षा कर उसे उस घोर संकट से बचाया । धनपाल ने भगवान् ऋषभदेव का एक विशाल मन्दिर धारा नगरी में बनवाया और उसकी प्रतिष्ठा उसने महेन्द्रसूरि से करवाई । धनपाल ने जिनमन्दिर की प्रतिष्ठा के समय भगवान् श्रादिनाथ की मूर्ति के समक्ष बैठ कर "जय जन्तु कप्प" इस चरण से प्रारम्भ कर ५०० गाथाओं वाली ऋषभजिन की स्तुति का निर्माण किया । राजा भोज के अनुरोध पर महाकवि धनपाल ने बारह हजार श्लोक प्रमारण तिलकमंजरी नामक एक ग्रन्थरत्न की रचना की । उस जैन - कथानों के ग्रन्थरत्न के वाचन अथवा श्रवरण के समय ऐसा प्रतीत होता था मानो नवों ही रस मूर्त स्वरूप धारण कर श्रोतानों के हृदयपटल पर अवतरित हो थिरक रहे हों । ग्रन्थ समाप्ति पर उस ग्रन्थ रत्न के शोधन का जब प्रश्न आया तो महेन्द्रसूरि के परामर्षानुसार गुर्जरनरेश भीम की राजसभा के विद्वान् वादिवैताल के विरुद से सुशोभित श्री शान्त्याचार्य को धारा नगरी में बुलाया गया । शांतिसूरि ने कतिपय दिनों तक धारा नगरी में निवास करते हुए केवल इसी दृष्टि से उस ग्रन्थरत्न का शोधन किया कि कहीं उसमें सर्वज्ञ वीतराग की वारणी के विपरीत तो कोई बात नहीं है । क्योंकि "सिद्ध सारस्वत" की उपाधि से अलंकृत महाकवि धनपाल की रचना में व्याकरण अथवा छंदो - शास्त्र सम्बन्धिनी त्रुटि की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती थी । वह तिलकमंजरी ग्रन्थ राजा भोज को अत्यन्त रुचिकर एवं अतीव सुन्दर लगा। उसने धनपाल से तिलकमंजरी में निम्नलिखित परिवर्तन करने का श्राग्रहपूर्ण अनुरोध किया : १. इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में सुस्पष्टरूपेण शिव की स्तुति की जाय । २. अयोध्या का जहां जहां इस ग्रन्थ में उल्लेख है, वहां धारा नगरी का नामोल्लेख किया जाय । शक्रावतार के स्थान पर महाकाल के अवतार का उल्लेख किया जाय । वृषभ के स्थान पर शंकर का नामोल्लेख किया जाय । ५. मेघवाहन के प्राख्यान में मेरा ( धाराधिपति भोज का ) नाम लिखा जाय । ३. ४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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