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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ]
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उनके कोड में अपने प्राणप्रिय पुत्र को बिठा दिया और हाथ जोड़कर निवेदन किया :- "परम पूज्य आचार्यदेव ! अब जैसा आप इसे बनाना चाहते हैं वैसा बनाइये | यह पूर्णरूपेण आपका है ।"
महेन्द्रसूरि ने शुभ मुहूर्त्त में शोभन देव को पंच महाव्रतों की भागवती दीक्षा प्रदान की और धारानगरी से दूसरे दिन प्रातः काल विहार कर गये । विहारक्रम से वे कुछ समय पश्चात् अराहिल्लपुर पट्टण पहुंचे ।
इधर धनपाल ने लोगों में अपने पिता की निन्दा करना प्रारम्भ कर दिया । कहने लगा कि इन्होंने अपने पुत्र को धन के बदले बेच दिया है। वे जैन साधु शूद्र हैं । मुख देखने योग्य नहीं हैं । वे स्त्रियों और बालकों को भुलावे में डाल देते हैं । इन पाखंडियों को हमारे देश से निर्वासित करवा दिया जाय। उसने क्रोध के वशीभूत हो राजा भोज से निवेदन किया । राजा भोज ने उसकी बात सुनकर जैन श्रमणों का विहरण विचरण मालव प्रदेश में राजाज्ञा द्वारा निषिद्ध करवा दिया । इस प्रकार राजा भोज की आज्ञा से मालव प्रदेश में बारह वर्षों तक जैन श्रमरणों का दर्शन तक दुर्लभ हो गया ।
धारानगरी के जैन संघ ने महेन्द्रसूरि की सेवा में जैन श्रमणों के मालव में विचरण सम्बन्धी राजा भोज की निषेधाज्ञा का पूरा विवरण प्रस्तुत कर दिया ।
शोभनदेव को श्रम धर्म में दीक्षित करने के पश्चात् प्राचार्य महेन्द्रसूरि ने उसे सभी विद्याओं और आगमों का अध्ययन प्रारम्भ करवाया। मेधावी शोभनदेव ने बड़ी निष्ठा, लगन और परिश्रम के साथ अध्ययन करते हुए श्रागमों के तलस्पर्शी ज्ञान के साथ-साथ सभी विद्याओं में निष्णातता प्राप्त की । श्राचार्य महेन्द्रसूरि ने शोभनदेव के प्रकाण्ड पांडित्य, वाग्मिता, विनय, आदि गुरणों से प्रसन्न होकर उन्हें वाचनाचार्य पद पर अधिष्ठित किया ।
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अवन्ति के संघ ने महेन्द्रसूरि की सेवा में विज्ञप्तिपत्र प्रस्तुत किया कि वे अपने चरणों से अवन्ति को पवित्र करें। शोभनदेव ने अपने गुरु महेन्द्रसूरि से निवेदन किया : " पूज्यपाद ! मैं धारानगरी में जाऊंगा और अपने भ्राता को शीघ्र ही प्रतिबोध दूंगा । यह सब मन-मुटाव मेरे निमित्त से ही पैदा हुआ है । मैं ही इसका प्रतिकार करूंगा और टूटे हुए इस सम्बन्ध को पुनः जोड़ने का प्रयास करूंगा । इस लिए मेरी ग्रापसे प्रार्थना है कि आप मुझे धारानगरी जाने की अनुज्ञा प्रदान कीजिये ।"
महेन्द्रसूरि ने अपने शिष्य शोभन उपाध्याय की प्रत्युत्पन्नमति सम्पन्नता, विनय, वाक्पटुता, मृदुभाषिता प्रादि प्रभावक, बहुमुखी प्रतिभा से प्रभावित हो, जिनशासन की प्रभावना के इस प्रात्यन्तिक महत्व के कार्य को धारा नगरी में जाकर
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