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________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य 1 [ ७३३ विशं विनिर्धूय कुवासनामयं, व्यचीचरद्यः कृपया मदाशये। अचिन्त्यवीर्येण सुवासनासुधा, नमोऽस्तु तस्मै हरिभद्रसूरये ।। १६ ॥ अनागतं परिज्ञाय, चैत्यवन्दनसंश्रया। मदर्थंव कृता येन, वृत्तिललित विस्तरा ।। १७ ।। यत्रातलरथयात्राधिकमिदमिति, लब्धवरजयपताकम् । निखिल सुरभुवनमध्ये, सततं प्रमदं जिनेन्द्रगृहम् ॥ १८ ।। यत्रार्थस्टंकशालायां, धर्मः सद्देवधामसु । कामो लीलावती लोके, सदास्ते त्रिगुणो मुदा ।। १६ ।। तत्रेयं तेन कथा कविना, निःशेषुणगणाघारे। श्री भिल्लमाल नगरे, गदिताग्रिममण्डपस्थेन ।। २० ।। प्रथमादर्श लिखिता, साध्व्या श्रुतदेवतानुकारिण्या। दुर्गस्वामि गुरूणां, शिष्यकयेयं गणाभिधया ।। २१ ।। संवत्सरशतनवके, द्विषष्टिसंहितेऽतिलंघिते चास्या । ज्येष्ठ सितपंचम्यां, पुनर्वसौ गुरुदिने समाप्तिरभूत् ॥२२ ।। उपर्युल्लिखित प्रशस्ति में सिद्धर्षि ने सूराचार्य से लेकर निवृत्तिकुल के पट्टधर प्राचार्यों की एक छोटी सी पट्टावली इस प्रकार दी है :- . १. सूराचार्य :-इनकी प्रशंसा में सिद्धर्षि ने लिखा है कि सूराचार्य समस्त तत्वों अथवा प्रागमों के पारगामी व्याख्याता विद्वान थे। वे भव्य प्राणियों को बोधिलाभ देकर उनके हृदयकमल को प्रफुल्लित करने में साक्षात् सूर्य के समान थे। वे निवृत्ति कुल के प्राचार्य लाट देश के शृगार के समान और पंच महाव्रतों के पालन में सदा सजग समुद्यत रहते थे। धरातल पर चारों मोर उनकी प्रसिद्धि प्रसृत हो गई थी। २. प्राचार्य देल्ल महत्तर:-सिषि के उल्लेखानुसार देल्ल महत्तर ज्योतिष-शास्त्र एवं निमित्त शास्त्रों के उच्चकोटि के विद्वान् होने के कारण देश देशान्तरों में विख्यात थे। ३. प्राचार्य उल्ल :-प्राचार्य देल्ल महत्तर के पश्चात् उनके पट्टधर श्री उल्ल निवृत्ति कुल के प्राचार्य हुए। ब्राह्मण कुल विभूषण प्राचार्य उल्ल की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई थी। ४. दुर्गस्वामी :-प्राचार्य उल्ल के पट्टधर प्राचार्य दुर्ग स्वामी हुए। गृहस्थ पर्याय में वे बड़े ही समृद्धिशाली लक्ष्मीपति थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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