________________
७१८ ]
[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३
उपमा कालिदासस्य, भारवेरर्थगौरवम् । दण्डिनः पदलालित्यं माघे, सन्ति त्रयो
गुणाः "I
इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि माघ कितना बड़ा प्रकाण्ड पण्डित था । अपने ज्येष्ठ भ्राता (ताऊ के पुत्र) माघ के समान ही सिद्धर्षि भी अप्रतिम काव्य प्रतिभा के धनी थे। जहां उनके ज्येष्ठ बन्धु महाकवि माघ ने 'शिशुपालवध' की रचना कर केवल साहित्यिक जगत् में ही विपुल कीर्ति प्राप्त की; वहां सिद्धर्ष ने, सकल कर्मकलुष को घोकर जीवनमुक्त होने की कामना वाले मुमुक्षु साधकों के लिये प्रकाशस्तम्भ तुल्य प्रशस्त पथप्रदर्शक 'उपमिति भवप्रपंच कथा' नामक महाकाव्य के सभी गुणों से परिपूर्ण एवं अध्यात्मज्ञान से श्रोत-प्रोत प्रत्युत्तम विशाल ग्रन्थ की रचना कर श्राध्यात्मिक जगत् और साहित्यिक जगत् — दोनों ही क्षेत्रों में समान रूप से अक्षय-कीर्ति अंजित की। वे संसार में अध्यात्म रस को ही सारभूत एवं अमृतत्व प्रदायी रस समझते थे । इस श्रागमवचन के अनुसार -
सब्वं विलवियं गीयं सव्वं नटं विडम्बियं । सव्वे श्राभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा ||
( उत्तराध्ययन सूत्र )
वे अध्यात्मकला के प्रतिरिक्त संसार की सब कलानों को निरर्थक समझते थे । उन सिद्धर्षि का जीवनवृत्त संक्षेप में इस प्रकार है :
विशाल गुजरात राज्य के अधिपति वर्मलात नामक महाराजा के महामात्य सुरप्रभ के कनिष्ठ पुत्र शुभंकर की पतिपरायणा - धर्मनिष्ठा पत्नी लक्ष्मी की कुक्षि से सिद्धर्षि का जन्म गजरात की राजधानी श्रीमाल में विक्रम की आठवीं शताब्दी के प्रारम्भकाल के आस-पास हुआ। शुभंकर श्रेष्ठि विपुल वैभव का घनी एवं महादानी था । अतः सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं से सम्पन्न एवं ऐश्वर्य पूर्ण वातावरण में शिशु सिद्ध का बड़े दुलार से लालन-पालन किया गया । शिक्षा योग्य वय हो जाने पर पिता ने अपने पुत्र के शिक्षरण की समुचित व्यवस्था की । कुशाग्रबुद्धि बालक सिद्ध युवावस्था में पदार्पण करते-करते अनेक विद्यानों में निष्णात हो गया ।
Jain Education International
सिद्धकुमार प्रतुल सम्पदा के स्वामी माता-पिता का इकलौता पुत्र था । सुखोपभोग की सामग्री की इसके यहां किसी प्रकार की कमी नहीं थी। एक कुलीन कन्या के साथ उसका विवाह कर दिया गया । उसके समवयस्क मित्रों की संख्या भी बढ़ने लगी। कुछ मनचले व्यसनप्रिय मित्रों के संसर्ग के परिणामस्वरूप सिद्ध कुमार को जुना खेलने का व्यसन लग गया । द्यूतक्रीड़ा के दुर्व्यसन में वह शनैः-शनैः इतना अधिक ग्रस्त हो गया कि रात्रि में बड़ी देर से वह घर लौटने लगा । उसकी पत्नी उसकी प्रतीक्षा में रात-रात भर जागती रहती । इस प्रकार नित्य निरन्तर
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org