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________________ दिगम्बर परम्परा में माथुर संघ की उत्पत्ति दिगम्बर परम्परा में विक्रम सं० ९५३ तदनुसार वीर नि० सं० १४२३ में प्राचार्य रामसेण ने मथुरा में माथुरसंघ की संस्थापना की। ये रामसेण मथुरा प्रदेश के दिगम्बर परम्परानुयायियों में बड़े ही लोकप्रिय थे। इन्होंने दिगम्बर परम्परा में उस समय में प्रचलित अनेक प्रमुख मान्यतामों से पूर्णतः भिन्न मान्यताएं प्रचलित की । प्राचार्य रामसेन द्वारा प्रचलित की गई नवीन मान्यताओं में से प्रमुख दो मान्यताएं निम्न प्रकार है साधुनों के लिये मयूरपिच्छ, बलाकपिच्छ अथवा-पिच्छ मादि किसी भी प्रकार की पिच्छी रखने की कोई आवश्यकता नहीं। उन्होंने अपने साधुओं को किसी भी प्रकार की पिच्छी रखने का निषेध किया। इसी कारण दिगम्बर परम्परा में इनका माथुर संघ निष्पिच्छक गच्छ के नाम से अभिहित किया जाने लगा। प्रागमिक उल्लेखों से यह निर्विवाद रूप से सिद्ध होता है कि साधु के पंच महाव्रतों में से प्रथम अहिंसा नामक महाव्रत की समीचीन रूप से परिपालना के लिये रजोहरण और मुखवस्त्रिका ये दो धर्मोपकरण प्रत्येक साधु-साध्वी के लिये अनिवार्यरूपेण परमावश्यक उपकरण बताये गये हैं। श्वेताम्बर परम्परा द्वारा मान्य एकादशांगी के एतद्विषयक सुस्पष्ट उल्लेखों को देखने से यह सिद्ध होता है कि श्रमण भगवान् महावीर द्वारा किये गये तीर्थ-प्रवर्तन के समय से ही पंच महाव्रतधारियों के लिये, अहिंसा महावत के निरतिचार -रूपेण परिपालनार्थ इन दो धर्मोपकरणों का अर्थात् रजोहरण (पिच्छी) एवं मुखवस्त्रिका का रखना निरपवादतः अनिवार्य रूपेण मावश्यक बताया गया है । दिगम्बर परम्परा के प्रागम तुल्य मान्य धर्मग्रन्थों में भी पिच्छी पोर कमण्डलु इन दो धर्मोपकरणों का रखना, तीर्थंकरों को छोड़ सभी पंच महाव्रतधारियों के लिये, दिगम्बर परम्परा के प्रादुर्भाव काल से ही अनिवार्य रखा गया है। किन्तु माथुरसंघ के संस्थापक प्राचार्य रामसेण ने "दर्शनसार" के निम्न उल्लेखानुसार साधुनों को किसी प्रकार की पिच्छी रखने का निषेध किया तत्तो दुसएतीदे, महुराए महुराण गुरुणाहो । णामेण रामसेणो, रिणपिच्छं वणियं तेण ॥४०॥ अर्थात्-तदनन्तर यानि विक्रम सं० ७५३ में नन्दितट नामक सुन्दर ग्राम में काष्ठासंघ की स्थापना के २०० वर्ष पश्चात् वि० सं० ६५३ में मथुरा प्रदेश के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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