SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 772
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१४ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग १ प्राचार्य धनेश्वर सूरि उच्च कोटि के विद्वान् होने के साथ-साथ बडे प्रभावशाली व्याख्याता थे। इनकी वाणी में पोज और माधुरी अोतप्रोत थी। इन्होंने अनेक शास्त्रार्थों में विजय प्राप्त की । इनके समय में राजगच्छ एक विशाल और प्रभावशाली गच्छ के रूप में प्रसिद्ध हुआ । धनेश्वर सूरि ने अनेक राजाओं को प्रबुद्ध कर जैनधर्मानुयायी बनाया। ___इस प्रकार का भी उल्लेख उपलब्ध होता है कि चित्तौड़नगर में इन्होंने अठारह हजार ब्राह्मणों को उपदेश देकर जैन धर्मानुयायी बनाया। इनके विशाल शिष्य परिवार में १८ शिष्य उच्च कोटि के विद्वान थे। गच्छ की विशालता को देखते हुए धनेश्वरसूरि ने अपने उन अठारहों विद्वान् शिष्यों को प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया और उनसे राजगच्छ की १८ शाखाएँ प्रचलित हुई। धनेश्वर सूरि के राजगच्छ की उन १८ शाखाओं में से जिस शाखा का मुख्य क्षेत्र चित्तौड़ रहा, वह चैत्रवाल गच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुई।' इन धनेश्वर सूरि के पश्चात् राजगच्छ के पट्टधर प्राचार्य प्रजितसिंह सूरि हुए और अजितसिंह सूरि के पश्चात् प्राचार्य वर्द्धमान सूरि हुए। इन वर्द्धमान सूरि ने विक्रम सम्वत् १८० से १६१ के बीच की अवधि में वनवासी गच्छ के प्राचार्य विमलचन्द्र सरि के शिष्य वीरमुनि को प्राचार्य पद पर अधिष्ठित किया। इस प्रकार इस राजगच्छ में अनेक विद्वान् और धर्म प्रभावक प्राचार्य हुए। उनका यथास्थान परिचय देने का प्रयास किया जायेगा। .' जैन परम्परा नु इतिहास, भाग १ पृष्ठ ५०८ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy