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७१. ]
[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ तथ्यों के आधार पर वीर निर्वाण की तीसरी शताब्दी के आसपास का अनुमानित किया जाता है।
इस प्रकार की स्थिति में तित्थोगालि पइण्णय के उल्लेखों पर विचार करना परमावश्यक हो जाता है । इतिहास के शोधप्रिय विद्वानों से अपेक्षा है कि वे इस सम्बन्ध में शोधपूर्ण प्रकाश डालेंगे।
'ोिगालि पइण्णय की गजसिंह राठौड द्वारा लिखित भूमिका का पृष्ठ ५ से ७, प्रकाशक श्वेताम्बर (चारथुइ) जैन संघ, जालौर, तस्तगढ़, श्री प्रचलचन्द जोइतमल बालगोता मोठवाडा (जालौर)।
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