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________________ वीर सम्वत् १०.० से उत्तरवर्ती भाचार्य ] । ७०९ स्वर्गस्थ होने पर कल्प व्यवहार सूत्र के हास का उल्लेख है। इसके विपरीत युग प्रधानाचार्य यन्त्र अथवा युगप्रधानाचार्य पट्टावलि में वीर निर्वाण सम्बत १४०० में ३५ वें युगप्रधानाचार्य धर्मऋषि के स्वर्गस्थ होने का उल्लेख है। इसके प्रागे तित्योगालि पइण्णय की गाथा संख्या ८१८ में उल्लेख है कि वीर निर्वाण सम्वत् १५०० में गौतम गोत्रीय महासत्वशाली श्रमण फल्गुमित्र के स्वर्गस्थ हो जाने पर दशाथ तस्कंध का ह्रास हो जायगा । युगप्रधानाचार्य यन्त्र में भी ३७ वे युगप्रधानाचार्य (संतीसवें) फल्गुमित्र का वीर निर्वाण सम्वत् १५२० में (लिपिक की त्रुटि को सुधारा जाय तो वीर निर्वाण सम्वत् १५००) स्वर्गस्थ होने का उल्लेख किया गया है। इसी ग्रन्थ की गाथा संख्या ८१६ में भरद्वाज गोत्रीय महा सुमिण नामक मुनि के वीर निर्वाण सम्वत् १६०० में स्वर्गस्थ हो जाने पर सूत्रकृतांग के ह्रास का उल्लेख किया गया है। युगप्रधानाचार्य पट्टावलि एवं यन्त्र में ४२ वें (बयालीसवें) युगप्रधानाचार्य सुमिण मित्र का वीर निर्वाण सम्वत् १९१८ में स्वर्गस्थ होने का उल्लेख है । युगप्रधानाचार्य पट्टावलि और तित्योगालि पइएणय के सुमिण मित्र सम्बन्धी उल्लेख में १८ वर्ष का अन्तर है। सारांश यह है कि तित्थोगालि पइण्णय में और युगप्रधानाचार्य पट्टावली में ३२ वें (बत्तीसवें) युगप्रधानाचार्य पुष्यमित्र के स्वर्गस्थ होने का समय समान रूप से वीर निर्वाण सम्वत् १२५० उल्लिखित है। युगप्रधानाचार्य पट्टावलि में पुष्यमित्र के पश्चात् सम्भूति को ३३ वां (तैतीसवां), युगप्रधान माढर सम्भूति को ३४ वां (चौतीसवां), धर्मऋषि को ३५ वां (पैतीसवां), ज्येष्ठांग गणि को ३६ वां (छत्तीसवां), फल्गुमित्र को ३७ वां (सैंतीसवां) पीर सुमिरण मित्र को ४२ वां (बयालीसवां) युगप्रधान बताया गया है। __इसके विपरीत तित्थोगालि पइण्णय में पुष्यमित्र के पश्चात् माढर सम्भति, पार्जव यति, ज्येष्ठभूति, फल्गुमित्र और महा सुमिण मुनियों का क्रमशः उल्लेख करते हुए यह बताया गया है कि इनके स्वर्गस्थ होने पर किन-किन सूत्रों का ह्रास हुमा। वस्तुतः दुस्समा समण संघथयं के रचनाकर धर्मघोष सूरि का समय विक्रम की चौदहवीं शताब्दी प्रर्थात् विक्रम सम्वत् १३२७ से १३५७ तक (वीर निर्वाण सम्बत् १७९७ से १८२७) का है जबकि तित्थोगालि पइण्णय का रचनाकाल अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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