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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
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चोद्दस वरिस सतेहिं, वोच्छेदो जिट्ठभूति समणंमि ।
कासव गुत्ते णेयो, कप्प-ववहार सुत्तस्स ॥८१७।।' अर्थात्-वीर निर्वाण के १४०० वर्ष पश्चात् काश्यप गोत्री ज्येष्ठभूति नामक श्रमण के स्वर्गस्थ होने पर कल्प-व्यवहार सूत्र का ह्रास हो जायगा।
कल्प व्यवहार सूत्र के ह्रास जैसी आत्यन्तिक महत्व की ऐतिहासिक घटना का आचार्य के नाम के साथ सुनिश्चित समय का उल्लेख होने के कारण प्राचीन प्रकीर्णक ग्रन्थ तित्थोगालि पइण्णय की उपरिलिखित गाथा में निहित तथ्य वस्तुतः इतिहास के सभी विद्वानों के लिये बड़ी गहराई से विचार करने योग्य है।
तित्थोगाली पइण्णय में अधिकांश ऐसे ऐतिहासिक तथ्य दिये गये हैं जिनकी कि पुष्टि जैन वांग्मय के विभिन्न ग्रन्थों से होती है । इस ग्रन्थ की गाथा संख्या ८१२ से १४ तक (युगप्रधानाचार्य) पुष्यमित्र के सम्बन्ध में यह लिखा गया है कि वीर निर्वाण सम्वत् १२५० में गणि पुष्यमित्र के स्वर्गस्थ हो जाने पर व्याख्या प्रज्ञप्ति का छः अन्य अंगों के साथ ह्रास हो जायगा । यथा :
पण्णासा वरिसेहिं य बारस वरिस सएहिं वोच्छेदो।
दिण्णगणि पूसमित्ते सविवाहाणं छलंगाणं ॥ "दुस्समा समण संघ थयं" के द्वितीयोदय के युग प्रधान यन्त्र में भी बत्तीसवें युगप्रधानाचार्य पुष्यमित्र का यही समय दिया हुआ है ।
तित्थोगालिपइण्णय की गाथा संख्या ८१५ में माढर सम्भूत गणि के वीर निर्वाण सम्वत् १३०० में स्वर्गस्थ हो जाने पर समवायांग के ह्रास का उल्लेख है। इसके विपरीत युगप्रधानाचार्य पट्टावलिदुस्समासमरणसंधथयं के युगप्रधान यन्त्र में माढर सम्भूति को चौतीसवां युग प्रधान बताते हुए वीर निर्वाण सम्वत् १३६० में उनके स्वर्गस्थ होने का उल्लेख है। माढर सम्भूति से पहले उस युगप्रधान यन्त्र में सम्भूति को तैतीसवां युगप्रधानाचार्य बताकर वीर निर्वाण सम्वत् १३०० में उनके स्वर्गस्थ होने का उल्लेख है।
तित्थोगालि पदण्णय की गाथा संख्या ८१६ में आर्जव नामक यति के वीर निर्वाण सम्वत १३५० में स्वर्गस्थ हो जाने पर स्थानांग सूत्र के ह्रास का उल्लेख किया गया है जबकि युगप्रधान यन्त्र में माढर सम्भूति के वीर निर्वाण सम्वत् १३६० में स्वर्गस्थ होने का उल्लेख है ।
इसी प्रकार तित्थोगालि पइण्णय की गाथा सं० ८१७ में जैसा कि ऊपर बताया गया है वीर निर्वाण सम्वत् १४०० में काश्पय गोत्रीय ज्येष्ठ भूति श्रमण के
'पं० श्री कल्याणविजयजी और गजसिंह राठोड़ द्वारा संपादित तित्थोगाली पइन्नय
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