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________________ 1 हथू डी का राठौड़ राजवंश और जैनधर्म क्रमशः मंडोवर ( मण्डोर ) और जोधपुर राज्य पर शासन करने वाले राठौड़ राजवंश के मरुधरा में आगमन के पर्याप्त प्राचीन काल से ही राठोड़ों की एक शाखा का राज्य मारवाड़ में हथ डी ( मारवाड़ के गोडवाड़ ) क्षेत्र में बीजापुर से एक कोस दूर ) नामक नगर पर था । यह कोई विशेष बड़ा राज्य नहीं था किन्तु मेवाड़, सिरोही आदि राज्यों का सोमावर्ती क्षेत्र होने के कारण रणनीति की दृष्टि से इसका बड़ा महत्व था । हथूड़ी राजवंश का उस समय के बड़े-बड़े राजानों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध था । मेवाड़ के महाराणा प्रल्लट की महारानी महालक्ष्मी हथ डी राजवंश की राजकुमारी थी । विक्रम की दशवीं शताब्दी के शिलालेखों से यह प्रमाणित होता है कि हथूड़ी राज्य के कतिपय राठौड़वंशी राजा जैनधर्म के प्रति बड़ी श्रद्धा-भक्ति रखते थे और उनमें से कतिपय जैनधर्मावलम्बी थे । यह पहले बताया जा चुका है कि मेवाड़ के महाराणा अल्लट के निर्देशानुसार हथूड़ी का राठौड़ वंशीय राजा विदग्धराज आचार्य बलिभद्रसूरि की सेवा में तत्पर रहता था । उनके उपदेशों से विदग्धराज को जैन धर्म के प्रति रुचि उत्पन्न हुई और प्राचार्य वासुदेवसूरि के उपदेशों से वह जैनधर्मावलम्बी बन गया । वि० सं० ६७३ के उसके एक दानशासन से यह तथ्य प्रकाश में आया है। कि हथू डी के राजा विदग्धराज ने ह्यू डी में भ० आदिनाथ का एक विशाल मन्दिर बनवाकर उसकी दैनन्दिनी आवश्यकताओं की पूर्ति एवं सुदीर्घ काल तक समुचित व्यवस्था हेतु सभी प्रकार के व्यापारिक लेन-देन एवं कृषि उपज पर एक धर्मादा कर निर्धारित किया । विदग्धराज द्वारा अपने ताल के बराबर स्वर्ण का तुलादान दिये जाने का भी उल्लेख प्राप्त होता है । विदग्धराज का शासनकाल विक्रम की दशवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध अनुमानित किया जाता है । विदग्धराज के पश्चात् उसका पुत्र मम्मटराज हथू डी का राजा हुआ । मम्मटराज ने भी एक दानशासन लिखकर अपने पिता विदग्धराज के दानशासन का अनुमोदन करते हुए कपास, केसर, मजीठ, गेहूं, जौ, मूंग आदि के आदान-प्रदान व्यापार पर भी धर्मादा कर लगाकर उससे आदिनाथ के मन्दिर के सभी धार्मिक कार्यो को और अधिक समुचित रूप से चलाते रहने की व्यवस्था की । राठौड़राज मम्मट ने वि० सं० ६६६, माघ कृष्णा ११ के उस दानशासन में सर्वसाधारण को देवद्रव्य की पूरी तरह रक्षा के लिये सदा सतर्क रहने का परामर्श देते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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