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________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ] [ ६६६ गोविन्द तृतीय ने अपने (वीर नि० सं० १३२१-१३४१) बीस वर्ष के शासनकाल में मलखेड़ के राष्ट्रकट राज्य को एक शक्तिशाली साम्राज्य का स्वरूप प्रदान कर दिया। वीर नि० सं० १३४१ में उसकी मृत्यु हो जाने के पश्चात् उसका पुत्र अमोघवर्ष राष्ट्रकूट के विशाल साम्राज्य के राजसिंहासन पर आसीन हुआ। गोविन्द (तृतीय) की मृत्यु के अनन्तर जिस समय अमोघवर्ष राष्ट्रकूटवंशीय विशाल साम्राज्य के राजसिंहासन पर बैठा उस समय उसकी अवस्था केवल १२ वर्ष की ही थी। सूविशाल साम्राज्य के स्वामी की बालवय को देख कर यह स्वाभाविक ही था कि उस साम्राज्य के राज्यलिप्सु सामन्त, शत्रु राजा और पड़ोसी राजा सिर उठाते । अमोघवर्ष के राजसिंहासन पर बैठते ही पूर्वी चालुक्य राजवंश के बैंगी के राजा विजयादित्य एवं गंगवंशीय राजा राचमल्ल प्रथम का पृष्ठबल पा कर राष्ट्रकूट साम्राज्य के सामन्तों एवं राज्याधिकारियों ने राष्ट्रकूट साम्राज्य में चारों ओर विद्रोह की आग भडका दी । अमोघवर्ष ने बाल वय होते हुए भी बड़े धैर्य और सूझ बूझ से काम लिया। अपने चचेरे भाई लाट प्रदेश के शासक कर्क और अपने सेनापति बंकैया की सहायता से उसने एक के पश्चात् एक करके सभी विद्रोह को कुचल डाला। उन्नीस (१६) वर्ष की आयु में पदार्पण करते करते अमोघवर्ष ने अपने राज्य में चारों ओर शान्ति स्थापित कर दी। ईस्वी सन् ८५० के आस-पास पूर्वी चालूक्यों के बैंगी नरेश गुणग विजयादित्य तृतीय ने अपने राज्य को राष्ट्रकटों के आधिपत्य से मुक्त कराने की चेष्टा की। इस कारण पूर्वी चालुक्यों के साथ प्रमोघवर्ष को पुनः युद्ध करना पड़ा। करनल जिले के विंगावलि नामक स्थान पर गुणग विजयादित्य की चालुक्य सेना के साथ अमोघवर्ष की सेना का भयंकर युद्ध हुमा । अमोघवर्ष की उसमें निर्णायक विजय हुई । इस युद्ध में पराजय के पश्चात् बैंगी का राजा पूर्वी चालुक्य गुणग विजयादित्य जीवन भर अमोघवर्ष का स्वामिभक्त सामन्त बना रहा। पूर्वी चालुक्यों को वशवर्ती बनाने के अनन्तर गंग राजा राचमल्ल प्रथम के पुत्र एडय नीतिमार्ग ने जब राष्ट्रकूट साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह खड़ा किया तो अमोघवर्ष को पुनः युद्ध करने के लिये बाध्य होना पड़ा। इस युद्ध में भी अमोघवर्ष के सेनापति बंकैया ने गंग राज को पराजित कर उसे राष्ट्रकूट वंश का वशवर्ती राजा बना लिया। - इस प्रकार अमोघवर्ष को लगभग ४६ वर्ष तक संघर्षरत रहना पड़ा। उसके शासन काल के अन्तिम १८ वर्ष लगभग पूर्ण शान्ति के साथ बीते । राष्ट्रकूट वंश की राजधानी मान्यखेट को अमोघवर्ष इन्द्र की अलकापुरी के समान सुन्दर बनाना चाहता था । इसमें उसने सुन्दर राजमहल और अनेक भवन बनवाये । इसका शेष परिचय राष्ट्रकूट राजवंश के परिचय में दिया जा चुका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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