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________________ भ० महावीर के ४३ वें और ४४ वें पट्टधर के समय की राजनैतिक स्थिति भ० महावीर के ४३.३ पट्टधर प्राचार्य लक्ष्मीवल्लभ और ४४ वें पट्टधर प्रा० रामऋषि स्वामी के प्राचार्यकाल में राष्ट्रकटवंशीय राजा अमोघवर्ष का शासन रहा । अमोघ वर्ष की गणना वीर निर्वाण की १४ वीं शताब्दी के सर्वाधिक शक्तिशाली राजाओं में की जाती है । जिन शासन के प्रति उसकी श्रद्धा-निष्ठा अटूट एवं प्रगाढ़ थी। वह स्वभाव से ही धार्मिक वृत्ति का प्रादर्श व्यक्ति था । वस्तुतः वह उस समय के भारतवर्ष के राजाओं में सर्वाधिक शक्तिशाली राजा होते हुए भी युद्धों की अपेक्षा धर्म और साहित्य के प्रति अधिक प्रेम रखता था । वह अनेक वार अपने राज्य-कार्यों और राजप्रासादों को छोड़ कर जैन साधनों की सत्संगति में चला जाता था। अमोघ वर्ष के पिता, राष्ट्रकूट वंश के सर्वाधिक प्रतापी सम्राट गोविन्द तृतीय, जिस समय १२ राजानों की सुविशाल शक्तिशाली सेना को युद्ध में पराजित करने के पश्चात् मालवा, लाट, गुजरात, कन्नौज आदि राज्यों पर अपना प्राधिपत्य स्थापित कर दक्षिणापथ की विजय के लिये आगे बढ़ रहा था उस समय नर्मदा तट पर अवस्थित श्रीभवन नामक स्थान पर उनके शैन्य-शिविर में ही वीर नि० सं० १३२६ (ई० सन् ८०२) में प्रमोघवर्ष का जन्म हुमा। अमोघवर्ष के जन्म के पश्चात् गोविन्द तृतीय को अनेक बड़ो बड़ी उपलब्धियां हुई । उसने दक्षिण के शक्तिशाली पल्लव राजा दन्तिदुर्ग को युद्ध में पूर्ण रूपेण पराजित कर पल्लवराज्य की राजधानी कांची पर अधिकार कर लिया। जब गोविन्द तृतीय, नवविजित कांची में ही विद्यमान था उस समय श्रीलंका के राजा ने उसके पास अपना दूत भेज कर उसकी (गोविन्द तृतीय की) आधीनता स्वीकार की । ___ अमोघ वर्ष के जन्म के पश्चात् गोविन्द तृतीय, वस्तुतः भारत का उस समय का सबसे बड़ा शक्तिशाली राजा कहलाने लगा। राष्ट्रकूट वंश के तत्कालीन राज कवियों ने गोविन्द तृतीय को अजेय सम्राट बताते हुए लिखा है कि जिस प्रकार श्री कृष्ण के जन्म के. पश्चात् यादव अजेय हो गये उसी प्रकार राष्ट्रकट राजवंश में गोविन्द तृतीय के जन्म के पश्चात् राष्ट्रकट वंश अजेय हो गया। १ प्रस्तुत ग्रन्थ के पृष्ठ २६१ की पंक्ति सं. ३ और ११ में ई. सन् ८०३ के स्थान पर ई. सन् ७६४ पढ़ें। उपलब्ध नवीन ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह अनुमान किया जाता है कि ई. सन् ७६४ में ध्र व की मृत्यु और गोविन्द तृतीय का राज्यारोहण हुआ था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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