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कवि परमेष्ठी (वागर्थ संग्रह के रचनाकार)
वीर निर्वाण की बारहवीं शताब्दी के उपान्त्य चरण में परमेष्ठी नामक एक महान ग्रन्थकार विद्वान हए हैं। ये कहां हए, किस निश्चित समय में हए, किस परम्परा के किस प्राचार्य के शिष्य थे, इनका समय कब से कब तक रहा, ये सब तथ्य आज विस्मृति के गहन अन्धकार में आच्छादित होने के कारण उपलब्ध नहीं हैं । कवि परमेष्ठी ने 'वागर्थ संग्रह' नामक एक विशिष्ट ग्रन्थरत्न की रचना की थी, जिसे अनेक विद्वानों ने आदर्श ग्रन्थरत्न समझ कर अपने-अपने ग्रन्थ प्रणयन के समय उसकी शैली से, उसमें निहित तथ्यों से मार्ग-दर्शन प्राप्त किया। प्राज कवि परमेष्ठी का 'वागर्थ संग्रह' ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है किन्तु उसकी प्रशंसा में किये गये प्रादरपूर्ण उल्लेख विक्रम की ९ वीं शताब्दी के महान् ग्रन्थकार पंचस्तूपान्वयी भट्टारक जिनसेन के आदि पुराण में उनके शिष्य गुरणभद्र के उत्तर पुराण में, और श्रमणबेलगोल में गोम्मटेश्वर (बाहुबली) की गगनचुम्बी विशाल मूर्ति के निर्माता एवं प्रतिष्ठापक चामुण्डराय के अपने ग्रन्थ 'चामुण्डपुराण' (ई० सन् १०३० के आसपास) में, आज भी विद्यमान हैं।
आदिपुराणकार भट्टारक जिनसेन ने कवि परमेष्ठी को कवियों का परमेश्वर बताते हुए उनके वागर्थ संग्रह की निम्नलिखित शब्दों में प्रशंसा की है :
"स पूज्यः कविभिलॊके, कवीनां परमेश्वरः ।
वागर्थ-संग्रह-कृत्स्नं, पुराणं यः समग्रहीत् ॥" भट्टारक जिनसेन द्वारा वागर्थ संग्रह के सम्बन्ध में किये गये इस उल्लेख से यह सिद्ध होता है कि कवि परमेष्ठी का 'वागर्थ संग्रह' वृहत् पुराण ग्रन्थ होगा।
भट्टारक जिनसेन से पूर्ववर्ती किसी विशिष्ट ग्रन्थकार द्वारा कवि परमेष्ठी के सम्बन्ध में किया गया उल्लेख अद्यावधि कहीं दृष्टिगोचर नहीं हुआ है, इससे यह अनुमान किया जाता है कि कवि परमेष्ठी भी "सुलोचना कथा" के रचनाकार कवि महासेन के संभवतः समकालीन, वीर निर्वाण की १२वीं शताब्दी के किसी समय में हुए होंगे।
'आदिपुराण १ । ६०
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