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________________ कवि महासेन (सुलोचना कथा के रचनाकार) वीर नि० की बारहवीं शताब्दी के लगभग महासेन नामक एक महान कवि हुए हैं। वे किस समय हए, किस परम्परा के किस प्राचार्य के शिष्य और कहाँ के थे इस सम्बन्ध में जैन वांग्मय में कोई उल्लेख अद्यावधि उपलब्ध नहीं हो रहा है। इनकी एकमात्र कृति 'सुलोचना कथा' का उल्लेख मिलता है, किन्तु वर्तमान में वह भी अनुपलब्ध है। विद्वान् समर्थ कवि प्राचार्य उद्योतन सूरि ने अपनी लोकप्रिय कृति 'कुवलयमाला' में, जिसे कि उन्होंने शक संवत् ६६६ के अन्तिम दिनों में पूर्ण किया, कवि महासेन की कृति 'सुलोचना कथा' की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए लिखा है : "सण्णिहिय जिणवरिंदा, धम्मकहा बंधदिक्खय परिंदा । कहिया जेण सुकहिया, सुलोयणा समवसरणं व ॥३६॥" "अर्थात्-जिस प्रकार तीर्थकर प्रभु समवसरण में विराजमान होकर वर्मकथा सुनाते हैं और उस धर्मकथा को सुनकर नरेन्द्र तक श्रमण धर्म में दीक्षित हो जाते हैं, उसी प्रकार कवि महासेन ने बड़ी ही सुन्दर ढंग से सुलोचना कथा की रचना की है, जिसे सुनकर एक राजा ने दीक्षा ग्रहण कर ली।" पुन्नाट संघीय प्राचार्य प्रमितसेन के शिष्य जिनसेन ने अपनी वीर नि० सं० १३१० की महान् कृति हरिवंश पुराण में महासेन की इस सुन्दर कृति को "शीलालंकारधारिणी जुनयनी सुन्दरी" की उपमा दी है। इन दोनों महान् ग्रन्थकार प्राचार्यों से पूर्ववर्ती किसी ग्रन्थकार की कृति में कवि महासेन और उनकी कृति 'सुलोचना कथा' के सम्बन्ध में कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता, इससे यही अनुमान लगाया जाता है कि सुलोचना कथा के रचनाकार विद्वान् कवि महासेन वीर निर्वाण की बारहवीं शताब्दी में किसी समय हुए होंगे। शोधार्थी विद्वानों से अपेक्षा है कि वे इस नितरामतीव सुन्दर एवं प्रमोघ उपदेशप्रदा 'कथा' को खोज निकालने की दिशा में प्रयास करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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