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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्त्ती प्राचार्य ]
कृष्ण ऋषि
विपुल चल-अचल सम्पत्ति, ऐश्वर्य, ऐहिक सुखोपभोग, पुत्र, कलंत्र, परिवार घर-द्वारादि सभी प्रकार के सांसारिक मोह-ममत्व को नागराज द्वारा छोड़ी जाने वाली केंचुल के समान एक ही झटके में छोड़ छिटका कर राव कृष्ण ने क्षत्रियोचित साहस का परिचय दिया । संयम ग्रहण करते ही वे राव कृष्ण से कृष्णर्षि बन अपने गुरु के पदचिन्हों पर चलते हुए घोर तपश्चरण पूर्वक वे अहर्निश ज्ञान-ध्यान की आराधना में, अध्यात्मरमरण में लीन रहने लगे ।
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इस प्रकार ६ मास तक विशुद्ध संयम की पालना कर कृष्णषि अपने मानव जीवन को अन्तिम समय में सफल कर स्वर्गस्थ हुए ।
कालान्तर में खिम ऋषि भी ६० वर्ष की संयम साधना के पश्चात ६० वर्ष की आयु पूर्ण कर स्वर्गवासी हुए ।
इन महर्षियों के जीवनवृत्त से अन्तर्मन में विश्वास होता है कि चैत्यवासी आदि विभिन्न परम्परात्रों में भी स्व-पर-कल्याणकारी अनेक महापुरुष समय-समय पर हुए हैं ।
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