SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 752
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६४ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ Aarmalaystemarts सद्यस्नात, विकीर्णकेश एवं उद्विग्न मनःस्थिति में २१ अपूप (पूर्व) भिक्षा में दे तो खिम ऋषि अपनी तपश्चर्या का पारण करे, अन्यथा जीवन भर निराहार ही रहे । अभिग्रह का नियम है कि वह मन ही मन किया जाता है किसी को इस प्रतिज्ञा के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का संकेत तक नहीं किया जाता। अपने अन्तर्मन में खिम ऋषि द्वारा की गई इस प्रतिज्ञा का किसी को भला कैसे पता चलता । ३ महीना और ८ दिन तक खिम ऋषि अपने अभिग्रह के अनुसार निराहार तपश्चरण में सन्तोष का अथाह सागर अपने अन्तस्थल में समेटे लीन रहे । दूसरे दिन घोर तपस्वी खीम ऋषि क्षत्रियश्रेष्ठ रावकृष्ण के आवास पर पहुंचे। रावकृष्ण उस समय स्नान कर स्नानागार से निकला ही था, उसके बालों में न तेल डला था और न कंघी ही की हुई थी। वह किसी कारण उद्विग्न अवस्था में खड़ा था। शिशिर की शीत लहर के कारण उसका तन-बदन ठिठुर रहा था। उसी समय चांदी के तसले में गरम-गरम अपूप (पूवे) लिये उसकी सेविका भोजनागार से निकल कर रावकृष्ण के समक्ष उपस्थित हुई। सहसा रावकृष्ण की दृष्टि द्वार में प्रविष्ट होते हुए खिम ऋषि पर पड़ी। उसने तत्काल पूवों से भरा चांदी का तसला सेविका के हाथ से लिया और खिम ऋषि की ओर बढ़े। नतमस्तक हो उद्विग्न राव कृष्ण ने खिम ऋषि से प्रार्थना की:--"महर्षिन् ! कृपा कर लीजिये ये गरम-गरम पूर्व। आज तो ऐसी भयंकर ठंड पड़ रही है कि धमनियों का रक्तप्रवाह भी जैसे बरफ की तरह जम जायेगा । लीजिये दया सिन्धो ! पूर्णतः निर्दोष और विशुद्ध कल्पनीय माहार है यह ।" . . रजतपात्र में रखे पूमों को खिम ऋषि ने गिना तो वे संख्या में पूरे २१ थे, न तो एक भी न्यून और न एक भी अधिक था। अपना अभिग्रह पूर्णतः पूर्ण हुमा देख खिम ऋषि ने झोली में से भिक्षापात्र निकाला और राव कृष्ण की भोर बढ़ा दिया। राव कृष्ण ने इक्कीसों अपूप अपने रजतपात्र से महर्षि खिम मुनि के भिक्षापात्र में उडेल दिये। इस प्रकार अभिग्रह पूर्ण होने पर खिम ऋषि की तीन मास और ८ दिन की लम्बी निराहार तपश्चर्या का पारण हुआ । रावकृष्ण के राजभवन में खिम ऋषि के पारण का समाचार तत्काल विद्युत् वेग से धारा नगरी में फैल गया। धारा नगरी के घर-घर से धन्य धन्य के कण्ठस्वर गूंज उठे। धाराधिवासियों और धाराधीश तक ने राव कृष्ण के भाग्य की मुक्तकण्ठ से सराहना की। धारा निवासी तपस्वीराज खिम ऋषि के दर्शनार्थ उमड़ पड़े। राजकुमार सिंघुल के साथ राव कृष्ण भी खिम ऋषि के विश्राम स्थल पर गया । जब राव कृष्ण को ज्ञात हा कि अब उसकी आयु के केवल ६ मास ही अवशिष्ट रहे हैं, तो उन्होंने अपना शेष जीवन समग्ररूपेण अध्यात्मसाधना में ही व्यतीत करने का दृढ़ निश्चय कर अपने प्रात्मीय जनों से अनुज्ञा प्राप्त कर श्रमणधर्म अंगीकार कर लिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy