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________________ ६६२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ जिन दिनों में वे अवन्ति नगरी के समीपस्थ धामनोद ग्राम के तालाब की पाल के निकट वन में तपश्चरण में निरत थे उन दिनों ग्राम के ब्राह्मणों के उद्दण्ड किशोर उनके पास पाते और ताड़न-तर्जनपूर्वक उन्हें अनेक प्रकार के दारुण दुःख देते। बोधा ऋषि न उन पर आक्रोश ही करते और न ध्यान से ही विचलित होते । इनकी इस प्रकार की सहनशक्ति, तपश्चर्या, क्षमा और शान्ति के प्रताप से अनेक प्रकार की सिद्धियां उन्हें स्वतः अनायास ही उपलब्ध हो गई। एक दिन वे उस तालाब की पाल के पास श्मशान में एक विशाल वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ खड़े थे । उसी समय उस ग्राम के धनाढ्य ब्राह्मणों के किशोर सदा की भांति वहां प्रा एकत्रित हुए और खिम ऋषि को ध्यान से विचलित करने के लिये उन पर ढेलों, पत्थरों और यष्टिकामों से प्रहार करने लगे। उन्हें भयंकर पीड़ा होने लगी किन्तु वे अडोल, निष्कम्प ध्यानमग्न खड़े रहे । वे ब्रह्मकिशोर उन्हें इतनी मार के उपरान्त भी निश्चल खड़ा देख उन पर तीव्र वेग से पत्थरों और डण्डों की बौछार करने लगे। खिम ऋषि के. अंग-प्रत्यंग से लहू की धाराएं बहने लगीं। किन्तु खिम ऋषि यह समझ कर कि मेरे कर्मबन्धन इन अबोध बालकों द्वारा काटे जा रहे हैं, शुभ्र ध्यान में लीन रहे। उनके मन में अणु मात्र भी क्रोध अथवा उत्तेजना उत्पन्न नहीं हुई । निरपराध, क्षमासागर खिम ऋषि पर उन उद्दण्ड किशोरों द्वारा किये जा रहे निर्दयतापूर्ण प्रहारों को देख न सकने के कारण उस श्मशान में अवस्थित कोई दिव्य शक्ति क्रुद्ध हो उठी। तत्क्षण उन उद्दण्ड किशोरों के मुख-नासिकाओं से अनवरत रूपेण लहू की धाराएं प्रवाहित हो गईं।क्षण भर में ही वे. कूमार्गगामी किशोर अपने-अपने घरों की ओर ऐसे भागे मानो एक धमाके के शब्द से चिड़ियों का झुड उड़ा हो । अपने पुत्रों के मुख और नाक से बहती हुई खुन की धाराओं को देख कर (उनके माता-पिता, स्वजन-स्नेही एवं पास-पड़ोस के पाबाल वृद्ध उन किशोरों के चारों ओर एकत्रित हो गये । लहू के प्रवाह को रोकने के अनेक उपाय किये, पर सब व्यर्थ । एक वृद्ध वैद्य ने कहा--"सबके एक साथ समान रूप से खून का प्रवाह हो रहा है, अत: वस्तुतः यह कोई व्याधि नहीं, अवश्यमेव दैवी प्रकोप है।" उन किशोरों को सान्त्वना भरे शब्दों में पूछा गया कि वे कहां थे, क्या कर रहे थे और सब के एक साथ समान रूप से मुख और नाक से रक्त प्रवाह का कारण क्या है ? सभी किशोर मूक बने एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। एक अल्पवयस्क किशोर ने रोते-रोते श्मशान में खिम ऋषि पर उन सबके द्वारा पत्थर बरसाये जाने का वृत्तान्त कह सुनाया। अन्त में उसने कहा-"ये लोग प्रतिदिन इसी प्रकार खिम ऋषि पर ढेले, पत्थर, डण्डे बरसाते रहते हैं । मैं क्या करूं मुझे भी साथ में पकड़ कर ले जाते हैं। खिम ऋषि तो कुछ भी नहीं बोले, हिले-डुले भी नहीं । और तो और उन्होंने तो अांख तक नहीं खोली। बिलकुल चुपचाप चोटें खाते रहे।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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