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________________ खिम ऋषि (भमा ऋषि) सांडेरा गच्छ (चैत्यवासी-परम्परा) के प्राचार्य यशोभद्रसरि के बलिभद्रसरि तथा शालिसरि के अतिरिक्त अनेक शिष्य थे। उनमें खिम ऋषि नामक मनि घोर तपस्वी और क्षमामूर्ति थे। उनका जीवनवृत्त निम्नलिखित रूप में उपलब्ध होता है : चित्तौड के समीपस्थ बड़गांव नामक ग्राम में बोघा नामक एक नितान्त निर्धन वरिणक रहता था। अपने जीवन निर्वाह के लिए वह कभी घृत का तो कभी तेल का व्यापार करता था। वह वस्तुतः नाममात्र का व्यापारी था। येन केन प्रकारेण दो तीन सेर भार का एक कुल्हड़ कभी घी से भर कर तो कभी तेल से भर कर समीपस्थ नगर में ले जाता और उससे जो साधारण सी आय होती उसी से अपना जीवन निर्वाह करता था। एक दिन उसने अपने गांव में घूम कर एक घड़ा घी से भरा और उसे बेचने के लिए नगर की ओर जाने के लिये घर से निकला कि उसको ठोकर लगी । वह नीचे गिर पड़ा। घी से भरा मिट्टी का घड़ा टूक-टूक हो गया और उसका पूरा का पूरा घृत धूल में मिल गया। गांव वाले उसकी स्थिति को जानते थे । व्यापारियों ने उसे एक दूसरा घड़ा घी से भर कर दिया। किन्तु दुर्भाग्य की बात कि ज्योंही वह नगर की ओर प्रस्थित हुआ कि वह दूसरा घड़ा भी उसके सिर पर से गिर पड़ा। वह घृत भी धूलिसात् हो गया। वणिक बोधा को अपने दुर्भाग्य पर विचार करते-करते संसार से विरक्ति हो गई। संयोगवशात् सांडेरा गच्छ के प्राचार्य यशोभद्र सूरि के उपदेश-श्रवण का उसे अवसर मिला। आचार्यश्री के उपदेश को सुनने के पश्चात् उसे विश्वास हो गया कि सुख-दुःख की प्राप्ति में पूराकृत शुभ-अशुभ कर्म वास्तव में सबसे बड़े और प्रमुख कारण हैं । उसने अपने पूर्वसंचित अशुभ कर्मों को नष्ट करने का निश्चय किया और वह आचार्यश्री के पास श्रमणधर्म में दीक्षित हो गया। तीन वर्ष तक अपने गुरुदेव की सेवा में रहते हए तपश्चरणपूर्वक बोधा मुनि ने ज्ञानार्जन किया। तदनन्तर गुरु की आज्ञा ले बोधा मुनि मर्घटों, वनों एवं गिरि-कन्दराओं में जा कर घोर तपश्चरण करने लगे। सभी प्रकार के संकटों, उपसर्गों और कष्टों को समभाव से सहन करते हुए वे आत्मचिन्तन में लीन रहते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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