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________________ ६६० ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास--भाग ३ वस्तुतः किंवदन्तियों के लिये और विशेषतः असंभव प्रतीत होने वाले कार्यों के निष्पादन से सम्बन्धित किंवदन्तियों के लिये इतिहास में कोई स्थान नहीं। तथापि शताब्दियों से चली आ रही किंवदन्ती के आधार पर जनमानस में घर की हुई इस चमत्कारिक घटना का इतिहास से इस कारण गहरा सम्बन्ध है कि मन्त्रतन्त्र और चमत्कारों की शक्ति प्रदर्शन का भी एक सुदीर्घावधि तक युग आर्यधरा पर रहा है और उस युग पर भी भगवान् की विशुद्ध श्रमण परम्परा के विकृत स्वरूप यति परम्परा के प्राचार्यों-यतियों को मंत्र-तंत्र शक्ति की, चमत्कारी कार्य निष्पादित कर देने की शक्ति की छाप शताब्दियों तक रही है। उस चमत्कार प्रदर्शन के अनेक चमत्कारिक कार्यों का विवरण अन्य मतावलम्बियों के साहित्य के समान यति यूग के जैन वांग्मय में भी विपूल मात्रा में उपलब्ध होता है। किसी न किसी रूप में इस प्रकार की घटनाओं का यत्किचित उल्लेख परमावश्यक हो जाता है। अन्यथा असम्भवता के नाम पर अथवा चमत्कारिक किंवदन्तियों के नाम पर इस प्रकार की घटनाओं की एकान्ततः उपेक्षा को "इतिहास में एक युग की उपेक्षा" की संज्ञा दी जा सकती है। मध्ययुग में इस प्रकार के चमत्कार प्रदर्शन के उपलक्ष में राजारों अथवा राज प्रतिनिधियों द्वारा मान्त्रिक जैनाचार्यों को ग्रामदान-भूमिदान दिये जाने के शिलालेखों का उल्लेख प्रस्तुत ग्रन्थ में, राष्ट्रकूट राजवंश के परिचय में किया जा चुका है। देखिये-"जैन धर्म का मौलिक इतिहास--भाग-३, पृष्ठ २६१ का अन्तिम पैरा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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