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यशोभद्रसूरि (चैत्यवासी परम्परा)
मरुधर प्रदेश के विक्रम की दशवीं शताब्दी में हुए आचार्यों में चैत्यवासीपरम्परा के यशोभद्र नाम के एक प्रभावक प्राचार्य हुए हैं। इनका युग चमत्कारों और मन्त्रशक्तियों की प्रतिस्पर्धा का युग था । मरुधरा के नारलाई के प्रास-पास के क्षेत्र में प्रचलित दन्तकथा के अनुसार नारलाई के गोसांइयों और यतियों (चैत्यवासी सांडेरा गच्छ के आचार्य) में मन्त्रशक्ति का प्रदर्शन करने की प्रतिस्पर्धा ठनी । दोनों पक्ष मन्त्रशक्ति के चमत्कार - प्रदर्शन में परस्पर एक-दूसरे से श्रेष्ठ होने का दावा करने लगे । दोनों पक्षों ने इसके निर्णय के लिये परीक्षा के रूप में एक शर्त रखी कि लगी नदी के तट पर बसे खैरथल ग्राम में एक तो आदिनाथ भगवान् ऋषभदेव का मन्दिर है और दूसरा शंकर का मन्दिर । यति और गौसांई इन दोनों पक्षों में से जो पक्ष अपने आराध्य प्रभु के मन्दिर को अपनी मन्त्र शक्ति के बल पर खैरथल से उठाकर सूर्योदय से पहले पहले नारलाई में ले आवेगा उसी पक्ष को मन्त्र शक्ति में श्रेष्ठ और बड़ा समझा जायेगा और उसी पक्ष को यह अधिकार होगा कि वह अपने उस मन्दिर को नारलाई के पहाड़ पर प्रतिष्ठापित करे । जो पक्ष अपने आराध्य देव के मन्दिर को अपने प्रतिपक्षी के पश्चात् विलम्ब से लायगा, वह पक्ष अपने मन्दिर को पहाड़ पर न रख कर उस से नीचे के किसी समतल स्थान पर ही स्थापित कर सकेगा । दोनों पक्षों में से जो पक्ष अपने प्राराध्य के मन्दिर को सूर्योदय के पश्चात् तक भी खैरथल से नारलाई में नहीं ला सकेगा, वह पक्ष पूर्णतः पराजित घोषित कर दिया जायेगा ।
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दोनों पक्षों ने इस शर्त को सहर्ष स्वीकार कर अपनी-अपनी मन्त्र शक्ति का प्रयोग प्रारम्भ किया ।
वहां प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी मन्त्र शक्ति के चमत्कार से, इस सर्वथा असम्भव समझे जाने वाले कार्य को संभव कर बताया । गोसांई खैरथल में स्थित भगवान शिव के मन्दिर को यतियों की अपेक्षा कुछ क्षण पूर्व नारलाई के प्रकाश में लाये, इस काररण शंकर का मन्दिर नारलाई के पहाड़ पर और प्रादिनाथ का मन्दिर, नीचे के भाग पर स्थापित किया गया ।
वर्तमान में नारलाई की पहाड़ी पर शिवजी का मन्दिर और नीचे के भाग पर प्रादिनाथ का मन्दिर, ये दो मन्दिर नारलाई में विद्यमान हैं ।
कहा जाता है कि नारलाई के आदिनाथ मन्दिर के शिलालेख में इस प्रकार का अभिलेख उट्टंकित है कि यह मन्दिर यशोभद्रसूरि अपनी मन्त्र शक्ति द्वारा यहां लाये ।
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