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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ जाने की घटना गिरनार तीर्थ के श्वेताम्बरों के अधिकार में आने की घटना से पश्चात् की है। अस्तु ।
सांडेराव गच्छ में आचार्य यशोभद्रसूरि महान् प्रभावक प्राचार्य हुए यह अनेक प्रमाणों से पुष्ट है । यशोभद्रसूरि के पश्चात् भी सांडेरा गच्छ में शालिसूरि, सुमतिसूरि, शान्तिसूरि आदि १६ जिनशासनप्रभावक एवं यशस्वी प्राचार्य हुए। इस गच्छ के 8वें प्राचार्य शान्तिसूरि (द्वितीय) ने विक्रम सं. १२२६ में (कुलगुरुओं के उल्लेखानुसार) कतिपय क्षत्रिय परिवारों को जैनधर्मावलम्बी बनाकर प्रोसवाल वंश की शीशोदिया शाखा की स्थापना की। गुगलिया, भण्डारी, चतुर, दूधोड़िया, आदि ओसवालों की १२ जातियां सांडेरा गच्छ की अनुयायीउपासक जातियां थीं। शीशोदियों के सम्बन्ध में तो निम्नलिखित दोहा कुलगुरु काल से ही प्रसिद्ध है :
शीशोदिया सांडेसरा, चउदसिया चौहारण ।
चैत्यवासिया चावड़ा, कुलगुरु एह प्रमाण ।। यशोभद्रसूरि के दो प्रमुख शिष्य थे, जिनका नाम था बलिभद्र और शालिभद्र । बलिभद्र ने अपने गुरु की अनुज्ञा के बिना ही अनेक विद्यामों और मन्त्रों की साधना कर ली और उन्होंने अपनी चमत्कारपूर्ण विद्याओं का प्रदर्शन प्रारम्भ कर दिया। इससे रुष्ट होकर यशोभद्रसूरि ने उन्हें अपने से पृथक् कर स्वेच्छानुसार विहार करने का निर्देश दिया । अपने बड़े शिष्य बलिभद्र को अपने से पृथक करने के पश्चात् यशोभद्रसूरि ने अपने द्वितीय प्रमुख शिष्य शालिभद्र को अपने उत्तराधिकारी के रूप में प्राचार्य पद प्रदान किया। ये शालिभद्रसूरि चौहानवंशीय क्षत्रिय थे।
___ इस प्रकार सांडेर गच्छ के प्राचार्य यशोभद्रसूरि ने अपने बड़े शिष्य बलिभद्र को प्राचार्य पद प्रदान न कर उनसे छोटे शिष्य शालिभद्र को प्राचार्य पद पर प्रधिष्ठित किया। इस पर बलिभद्र पर्वतश्रेणियों में जा गिरिगुहाओं में तपश्चरण करने लगे। घोर तपश्चरण के फलस्वरूप उन्हें अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हुई।
बलिभद्रसूरि ने महाराणा प्रल्लट की महारानी को जिस समय रोगमुक्त किया, उस समय महाराणा ने प्रसन्न हो उन्हें कोई बड़ी जागीर देने का प्रस्ताव किया। बलिभद्र मुनि ने यह कहते हुए जागीर लेना अस्वीकार कर दिया कि हम निष्परिग्रही जैन साधु परिग्रह के नाम पर राज्य अथवा जागीर की बात तो दूरएक कौड़ी तक भी नहीं रखते। हम लोग तो अहर्निश स्व-पर-कल्याण में निरत रहते हैं। अध्यात्मपथ के पथिकों को चल अथवा अचल, किसी भी प्रकार की सम्पत्ति से क्या लेना देना है।
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