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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती आचार्य ]
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ब्रह्मद्वीपिक शाखा के प्राचार्य गन्धहस्ति ने ग्यारहों अंगों पर विवरण लिखे थे, इस प्रकार का उल्लेख 'हिमवंत स्थविरावली' में उपलब्ध होता है। वह उल्लेख इस प्रकार है :
आर्य रेवतीनक्षत्राणां प्रार्य सिंहाख्या शिष्या अभवन् । ते च ब्रह्मद्वीपिकशाखोपलक्षिता अभवन् । तेषामार्य सिंहानां स्थविराणां मधुमित्रार्य स्कंदिलाचार्य नामानौ द्वौ शिष्यावभताम् । आर्य मधुमित्राणां शिष्या आर्य गन्धहस्तिनोऽतीव विद्वांसः प्रभावकाश्चाभवन् । तैश्च पूर्वस्थविरोक्त सोमास्वातिवाचकरचित तत्वार्थोऽपरि अशीतिसहस श्लोक प्रमाणं महाभाष्यं रचितं । एकादशांगोपरि चार्य स्कंदिल स्थविराणामुपरोधतस्तै विवरणानि रचितानि । यदुक्तं तद्रचिताचारांग विवरणान्ते यथा :
थेरस्स महुमित्तस्स, सेहेहि तिपुव्वनागजुत्तेहिं । मुरिणगणविवंदिएहिं, ववगयरागाइ दोसेहिं ।। १ ॥ बंभदीवियसाहामउड़ेहि, गंधहत्थि विबुधेहिं ।
विवरणमेयं रइयं, दो सय वासेसु विक्कमयो ।। २ ॥ ." स्वल्पमति भिक्षूणामुपकारार्थ चार्यस्कंदिल स्थविरोत्तंस प्रेरिता गन्धहस्तिन एकादशांगानां विवरणानि भद्रबाहुस्वामिविहितनियुक्त यनुसारेण चक्रः । ततः प्रभति च प्रवचनमेतत्सकलमपि माथुरीवाचनाया भारते प्रसिद्ध बभूव। मथुरानिवासिना श्रमणोपासकवरेणौशवंशविभूषणेन पोलाकाभिधेन तत्सकलमपि प्रवचनं गंधहस्तिकृतविवरणोपेतं तालपत्रादिषु लेखयित्वा भिक्षुभ्यः स्वाध्यायार्थ समर्पितम् ।'
अर्थात् ब्रह्मदीपिका शाखा के प्राद्य प्राचार्य सिंह के मधुमित्र और आर्य स्कन्दिलाचार्य नामक दो शिष्य थे। प्राचार्य मधुमित्र के शिष्य प्रार्य गन्धहस्ति महान् प्रभावक और विद्वान् थे। उन्होंने उमास्वाति द्वारा रचित तत्वार्थसूत्र पर ८० हजार श्लोक प्रमाण महाभाष्य की रचना की। प्रार्य स्कन्दिलाचार्य के अनुरोध पर आर्य गन्धहस्ति ने ग्यारह अंगों पर विवरणों की रचना की । जैसा कि आर्य गन्धहस्ति द्वारा निर्मित प्राचारांग सूत्र के विवरणों के अन्त में उल्लेख है :
"स्थविर मधुमित्र के शिष्य विशिष्ट विद्वान् गन्धहास्त ने, जो कि तीन पूवों के ज्ञान के धारक, मुनिगणों द्वारा वन्दित, रागद्वेष विहीन और
' स्व. पं. श्री कल्याणविजयजी महाराज की कृपा से उनके भण्डार की हस्तलिखित प्रति से लिखित हिमवन्त स्थविरावली। प्राचार्य श्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार जयपुर में उपलब्ध, पृष्ठ ६१ ।
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