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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ]
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शत्रुओं को जलाकर ध्वस्त कर दिया है तो 'ख्याते दृश्ये' अर्थात् निकट भूत में घटित हुई प्रसिद्ध बड़ी घटना के सम्बन्ध में अपनी वृत्ति में उदाहरण स्वरूप "प्रदहत" का प्रयोग कर दिया। पाल्य कीर्ति के समय के सुनिश्चित रूपेण निर्धारण के लिये यही एक प्रमाण पर्याप्त है कि पाल्यकीर्ति ने शक सं. ७७२ में (अपने काल के ३६वें वर्ष में) अपने 'शब्दानुशासन' पर स्वोपज्ञ अमोघवृत्ति की रचना शक सं ७७२-७७३ में अथवा दो चार वर्ष पश्चात् की। उपरिवरिणत शक सं० ८३२ का शिलालेख अमोघवर्ष की मृत्यु के ३५ वर्ष पश्चात् का और दूसरा शक सं ७८२ का कोन्नूर का शिलालेख सं. १२७ है। अमोघवर्ष की मृत्यु से १५ वर्ष पूर्व का। ये दोनों अभिलेख अमोघवर्ष द्वारा शत्रुओं के संहार की घटना की पुष्टि के लिये सक्षम प्रमाण हैं । पर पाल्यकीति ने स्वोपज्ञ अमोघवृत्ति की रचना शक सं. ७७२ में की। इसकी पुष्टि के लिये तो अमोघवर्ष द्वारा शक सं. ७७२ में अपने शत्रुनों के ध्वस्त किये जाने की घटना का समय ही सक्षम है।
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