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________________ ६७२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३ किया है । उद्धरण तो काव्य मीमांसा में होने से सुरक्षित रह गया किन्तु पाल्यकीर्ति का वह ग्रन्थ विलुप्त हो गया और श्राज उसका नाम तक किसी को ज्ञात नहीं है । पाल्य कीर्ति - शाकटायन का समय पात्यकीर्ति के सत्ता काल को ज्ञात करने के अनेक साधन विद्यमान हैं पर श्रावश्यकता है उन साधनों की खोज के लिये श्रम करने की । पाल्यकीर्ति ने अपने शब्दानुशासन के सूत्र “ख्याते दृष्ये" की टीका करते हुए उदाहरण के रूप में उल्लेख किया है : "प्रदहदमोघवर्ष प्रारातीन् " -- श्रर्थात् अमोघवर्ष ने अपने शत्रुनों को जला दिया ।' पाल्यकीर्ति के इस उल्लेख में प्रमोघवर्ष द्वारा अपने शत्रुओं के संहार की पुष्टि करने वाला एक शिलालेख शक सं. ८३२ का उपलब्ध हुआ है, जिसमें उस घटना का उल्लेख करते हुए इस वाक्य का प्रयोग किया गया है - "भूपालान् कण्टकाभान् वेष्टयित्वा ददाह ।" अर्थात् - अपने राज्य के लिये कण्टक तुल्य ( कांटों के समान) विद्रोही राजाओं को घेर कर राष्ट्रकूट राजराजेश्वर अमोघवर्ष ने उन्हें जला दिया । इस घटना की पुष्टि करने वाला कोन्नूर जिला धारवाड़ का शक सं. ७८२ का तलेयूर ग्राम के दान का वह शिलालेख है - जिसमें यह उल्लेख है कि विद्रोही राजानों द्वारा सशस्त्र विद्रोह किये जाने की बात सुनकर प्रमोघवर्ष ने अपने महासामन्त बंकेय को प्रादेश दे उन पर आक्रमण कर उन्हें पूर्णतः नष्ट कर दिया । ३ यह तो एक निर्विवाद ऐतिहासिक तथ्य है कि राष्ट्रकूटवंशीय राजा अमोघवर्ष का शासन काल शक सं: ७३६ से शक सं. ७६७ तक रहा और अमोघवर्ष की प्रज्ञा से उसके सामन्त बंकेय ने शक सं. ७७२ में अनेक विद्रोहियों को मौत के घाट उतार कर और अनेकों विद्रोहियों को बन्दी बनाकर इस विद्रोह को पूर्णत: कुचल डाला । यह प्रमोघवर्ष के शासन काल का तीसरा और अन्तिम विद्रोह था, इसके पश्चात् उसके शासनकाल में कभी विद्रोह नहीं हुआ । अनुमान किया जाता है कि यह शिलालेख शत्रुदमन की घटना के १० वर्ष पश्चात् लिखा गया हो, जैसा कि प्रायः होता आया है । कर्नाटक यापनीयों का सुदृढ गढ़ अथवा केन्द्र स्थल था । पात्यकीर्ति अपने 'शब्दानुशासन' पर उस समय स्वोपज्ञ प्रमोघवृत्ति की रचना में संलग्न होंगे और बहुत सम्भव है कि मान्यखेट में ही हों । जब उन्होंने सुना कि अमोघवर्ष ने अपने " एपिग्राफिका इंडिका, बोल्यूम - १, पेज ५४ • जैन शिलालेख संग्रह भाग २, लेख संख्या १२७, पृष्ठ १४१ से १५० 3 प्रस्तुत ग्रंथ (जैनधर्म का मौलिक इतिहास भाग - ३) पृष्ठ २६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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