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कतिपय अज्ञात तथ्य ]
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संघ के आचार्यों ने राजनीति में खुलकर भाग लिया। जैन संघ के कतिपय धर्माचार्यों ने नये राज्यों एवं नये राजवंशों की स्थापना तक की। इस प्रकार राजवंशों की स्थापना करते समय और उन राजवंशों के राज्य विस्तार के समय उन राजाओं को आचार्यों ने युद्धभूमि में अन्तिम दम तक डटे रहने की भी प्रेरणा दी । इस प्रकार राजवंशों एवं राज्यों की स्थापना के साथ-साथ उन्हें शक्तिशाली बनाने तथा सीमा विस्तार करने में कतिपय आचार्यों ने अपने शिष्य राजाओं को सक्रिय सहयोग और विजय अभियानों में परामर्श तक भी दिया। इस प्रकार के अनेक उल्लेख मध्ययुगीन शिलालेखों में उपलब्ध होते हैं। प्राचार्य सूदत्त ने (बी. ए. सेलोटोर के अभिमतानुसार अपरनाम प्राचार्य वर्द्धमानदेवने) उन पर आक्रमण करने के लिये झपटते हुए चीते की ओर इंगित कर अपने पास बैठे यदुवंशी क्षत्रियकुमार सल् को आदेश दिया:
"पोयसल ! अर्थात् हे सल् ! इस चीते को मार डालो।" ।
सल ने मुदत्त प्राचार्य द्वारा दी गई चामर की मठ से चीते को मार डाला। आचार्य सुदत्त क्षत्रियकुमार सल के इस अद्भुत साहसपूर्ण शौर्य से बडे प्रसन्न हुए। उन्होंने उस क्षत्रियकुमार का नाम पोयसल रक्खा और उसे सभी भांति की सहायता एवं परामर्श प्रदान कर होय सल (पोय सल) राज्य की स्थापना की और उसे बनवासी राज्य का अधिपति बनाया। प्राचार्य सुदत्त ने होयसल राज्य के प्रथम राजा सल, उसके पुत्र विनयादित्य (प्रथम) और विनयादित्य के उत्तराधिकारी नृपकाम इन तीनों राजाओं की उनके राज्यकाल में होयसल राज्य को एक गक्तिशाली राज्य बनाने में सभी भांति की सहायता की।
शान्ति देव नामक प्राचार्य ने होयसल वंश के राजा विनयादित्य (द्वितीय) का विपूल लक्ष्मी (राज्यलक्ष्मी) प्राप्त करने में बडी सहायता की।।
कारण रगरण के प्राचार्य सिंहनन्दी ने दडिग और माधव नामक राजकुमारों को सभी विद्याओं की शिक्षा दे उन्हें अपने हाथों से राजमुकुट पहना कर एक शक्ति
१. क-वर्द्ध मान मनीन्द्रस्य, विद्यामन्त्र प्रभावतः । गार्दूल स्ववशीकृत्य, होयसलापालयद्धराम् ॥
(जैन शिलालेख संग्रह भाग ३ लेख संख्या ६६७ पृष्ठ ५१६)
ख- मोडियेवल जैनिज्म पेज ६४ २. जैन शिलालेख संग्रह भाग २ लेख संख्या ३०१ ३. यस्योपास्यपवित्र पाद कमल द्वन् द्वन् नपः पोयसलो,
लक्ष्मी सन्निधिमानयत् स विनयादित्यः कृताजाभुवः । कस्तस्याहंति शान्तिदेव यमिनस्सामध्यंमित्थं तथे,
......................... ।।५।। [ जैन शिलालेग्व संग्रह भाग १, लेख मंग्या ५४ (६७)]
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