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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
धनराशि का दान दिये जाने के आचार्यों भट्टारकों, अथवा श्रमणों द्वारा मठों, मन्दिरों, तीर्थों, वसतियों आदि का आधिपत्य अथवा स्वामित्व अंगीकार करने के अगणित उल्लेख भरे पड़े हैं। तीर्थकरों के मन्दिरों की प्रतिष्ठा अथवा पूजा आदि से भी उन धर्मसंघों को सन्तोष नहीं हुआ तो उन्होंने ज्वालामालिनी, पद्मावती आदि देवियों के, गोम्मटेश्वर की स्वतन्त्र मतियां बनवा इनके पथक स्वतन्त्र मन्दिर बनवाने की नव्य नूतन प्रथा का प्रचलन किया। केवल यही नहीं, अपितु मान सम्मान एवं लोकैषणाओं से ओतप्रोत मानस वाले उन उत्तरवर्ती काल में पनपे एवं प्रसिद्धि पाये हए जैन धर्म संघों के महत्वाकांक्षी आचार्यों ने मन्त्र, तन्त्र, ज्वालामालिनी कल्प, पद्मावती कल्प, आदि का आविष्कार कर अधिकाधिक संख्या में लोगों को अपना अनुयायी बनाने एवं लोकमत. को अपनी ओर आकर्षित करने के साथ-साथ अपनी उत्तरोत्तर बढ़ती हुई महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु राजनीति में, शासन संचालन में, सक्रिय भाग लेना भी प्रारम्भ कर दिया। जर्नल आफ दी बम्बई ब्रान्च आफ दी रायल एशियाटिक सोसायटी, वाल्यूम १० पृष्ठ २६० एफ एफ के अनुसार सौं-दत्ति से प्राप्त ईस्वी सन् १२२८ के अभिलेख के अनुसार वेणु ग्राम (साम्प्रत कालीन बेलगांव) के रट्टवंशी राजा कार्तवीर्य एवं उसके पुत्र राजा लक्ष्मीदेव के राजगुरु जैनाचार्य मुनिचन्द्र ने इन राजाओं के राज्य संचालन और सैनिक अभियानों में सक्रिय भाग लेकर इन रटवंशी राजाओं के राज्य की सीमाओं का विस्तार कर रट्ट राज्य को एक शक्तिशाली राज्य का रूप दिया। उक्त शिलालेख के लेखानुसार जैनाचार्य मुनिचन्द्र धर्मनीति के साथ-साथ रणनीति के भी विशारद थे। सर्वोच्च सम्मान के योग्य एवं सभी मन्त्रियों में सर्वोच्च सुयोग्य मन्त्री एवं शक्तिशाली रट्टवंशी राज्य के निर्माता अथवा संस्थापक जैनाचार्य मुनिचन्द्र ने अपनी उच्च कोटि की प्रशासनिक योग्यता एवं उदारता के गुण से अपने आपको अन्य सभी मन्त्रियों में सर्वाग्रणी सिद्ध किया ।'
देवद्धिगणि से उत्तरवर्ती काल में बदलो हुई सामाजिक, धामिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों के कारण इस प्रकार लोकप्रिय एवं बहुजन सम्मत बने श्रमण १. Munichandra's activities were not confined to the sphere of Religion alone. Besides being a spiritual guide and political advisor of the Royal House Hold, be appears to have taken a leading part not only in the administrative affairs, but also in connection with the military Campaigos of the kingdom. He is stated to have expanded the boundries of the Ratta territory and established their authority on a firm footing. Both Laxmi Deo lind and his father Kart Virya IV were indebted to this divine for his sound advice and political wisdom. Munichandra was well versed in sacred lore and proficient in military science. "Worthy of respect, most able among ministers, the establisher of the Ratta King Munichandra surpassed all others in capacity for administration and in generosity”. (Jainism in south lodia in some jaina Epigraphs--By P.B. Desai Page 114-115)
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