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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ]
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की प्रशंसा की गई है। इससे अनुमान किया जाता है कि जयघवलाकार प्राचार्य जिनसेन का जन्म शक सं. ६७५ के आसपास हुआ होगा । शक सं. ७३८ में जब आचार्य वीरसेन ने धवला टीका की रचना पूर्ण की, उस समय उनकी लगभग ६३ वर्ष की आयु हो गई होगी। उसके अनन्तर ४० हजार श्लोक प्रमाण अवशिष्ट जयधवला टीका पूर्ण करने और तत्पश्चात् आदि पुराण के ४२ पर्वो और ४३वें पर्व के ३ श्लोक-- कुल मिलाकर १०३८० श्लोकों के निर्माण में कम से कम २५ वर्ष तक तो उन्हें श्रम करना ही पड़ा होगा । इन सब तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए विचार करने पर अनुमान किया जाता है कि लगभग ८८ अथवा ६० वर्ष की प्रायु पूर्ण कर प्राचार्य जिनसेन शक सं. ७६५ के पास-पास स्वर्गवासी हए होंगे। इस प्रकार उनका जीवन काल शक सं. ६७५ से ७६५ तदनुसार वि. सं. ८१० से १०० के बीच का अनुमानित किया जा सकता है।
प्राचार्य जिनसेन शैशवावस्था को पार कर बालवय में ही वीरसेन के पास दीक्षित हो गये थे अतः वीरसेन ही उनके शिक्षा गुरु भी रहे और दीक्षा गुरु भी। आचार्य जिनसेन वस्तुतः अपने गुरु के अनुरूप ही कर्मठ विद्वान् थे मोर वे लगभग ७०-७५ वर्ष तक जैन वांग्मय और जिनशासन की सेवा में निरत रहे।
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