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भट्टारक जिनसेन (पंचस्तूपान्वयो)
(दिगम्बर परम्परा)
भट्टारक परम्परा के पंचस्तूपान्वय-सेन गरण के धवलाकार प्राचार्य वोरसेन के शिष्य जिनसेन वीर निर्वाण की चौदहवीं शताब्दी के यशस्वी ग्रन्थकार थे।
- जयधवला प्रशस्ति के श्लोक सं. २२ के उल्लेखानुसार जिनसेन, जिस बाल वय में कर्णवेध संस्कार भी नहीं होता, उस बाल वय में ही पंचस्तूपान्वयी सेन गण के आचार्य भट्टारक वीर सेन के पास श्रमण धर्म में दीक्षित हो गये थे। जिस समय जिनसेन अपने गुरु के पास भट्टारक परम्परा में दीक्षित हुए उस समय उनकी वय कितनी होगी, इसका अनुमानत: बोध कराने वाला एक साधन है । पुन्नाट संघीय जिनसेनाचार्य ने शक सं. ७०५ में हरिवंश पुराण की रचना पूर्ण की। हरिवंश के प्रारम्भ में ही अपने से पूर्ववर्ती एवं समकालीन कवियों के स्मरण गुणकीर्तन के साथ साथ श्लोक सं. ४० में 'पार्वाभ्युदय' के रचनाकार पंचस्तूपान्वयी जिनसेन
और उनके इस काव्य की भी प्रशंसा की गई है । शक सं० ७०५ में सम्पूर्ण किये गये विशाल हरिवंश पुराण की रचना में पांच-सात वर्ष का समय तो अवश्य लगा होगा । इससे यह फलित होता है कि जिनसेन ने शक सं० ६६५ से ७०० के बोच की अवधि में 'पाश्वाभ्युदय' काव्य की रचना पूर्ण कर दी थी। अन्यथा हरिवंश पुराण के प्रारम्भ में 'पाश्वाभ्युदय' का उल्लेख करना पुन्नाट संघीय जिनसेन के लिए संभव नहीं हो पाता । '
पार्वाभ्युदय' जैसे विद्धानों द्वारा प्रशंसा पाने योग्य उत्कृष्टकोटि के काव्य की रचना के लिये काव्यालंकार व्याकरण छन्दोशास्त्र आदि के प्रकाण्ड पाण्डित्य के साथ वयस्कता की भी अपेक्षा की जाती है।
__ 'पार्वाभ्युदय' काव्य समस्यापूात्मक एवं सम्पूर्ण मेघदूत को अपने अंक में परिवेष्टित (समाविष्ट) कर लेने वाला एक ऐसा अनुपम खण्ड काव्य है, जिसकी तुलना में अन्य काव्य नहीं ठहर सकते । 'मेघदूत' की कथावस्तु है विरही यक्ष का अपनी प्रेयसी के प्रति विषय-वासनाओं के पुट से संपुटित संदेश । इसके विपरीत 'पार्वाभ्युदय' की कथावस्तु त्याग विराग से ओत-प्रोत पार्श्वनाथ-चरित्र है । दोनों कथावस्तुओं में आकाश पाताल जैसा अथवा अमावस्या की अन्धकार पूर्ण कालरात्रि और शरद पूर्णिमा की चांदनी रात जैसा अन्तर है। इस प्रकार की घोर असमानता के उपरान्त भी जिनसेन ने अपने पार्वाभ्युदय खण्ड काव्य में मेघदत को समाविष्ट करते हुए अपनी कृति से विद्वानों को विमुग्ध एवं विस्मित कर दिया। इस प्रकार की अद्भुत क्षमता प्राप्त करने के लिये कम से कम २० वर्ष की वय का होना तो परम आवश्यक है।
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