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________________ ६६० ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३ का परिचय पाते ही राजकुमार ग्रामराज को पहचान लिया । आचार्यश्री ने आमराज से कहा कि वह उपयुक्त समय की प्रतीक्षा में मोढेरा में ही रहकर उनके पास और बप्पभट्टी के पास विद्याध्ययन करे । आचार्य सिद्धसेन के निर्देशानुसार राजकुमार श्रमराज उनके पास रहकर विद्याध्ययन करने लगा । इस प्रकार आचार्यश्री के सान्निध्य में बप्पभट्टी के संसर्ग में रहते हुए राजकुमार ग्रामराज के अन्तर्मन में बप्पभट्टी के प्रति प्रगाढ़ अनुराग हो गया । श्रमराज ने आचार्यश्री और बप्पभट्टी की सेवा में रहते हुए बड़ी निष्ठा के साथ अध्ययन किया । अनुमान किया जाता है कि आमराज का पिता यशोवर्मन एक साहसी योद्धा होने के साथ-साथ सरस्वती का भी उपासक और अच्छा लेखक था । उसने "रामाभ्युदय” नामक एक नाटक की भी रचना की थी । यह नाटक 'वर्तमान में उपलब्ध नहीं है किन्तु "ध्वन्यालोक", साहित्य दर्पण आदि में यशोवर्मन के इस नाटक का उल्लेख है ।' अस्तु । कालान्तर में यशोवर्मन की मृत्यु होते ही कन्नौज के मन्त्रियों ने राजकुमार आमराज को मोढेरा से कन्नौज ले जाकर उसका कन्नौज के राज-सिंहासन पर राज्याभिषेक किया । आमराज अपर नाम नागावलोक एक शक्तिशाली राजा सिद्ध हुआ । इसने कन्नौज राज्य की चहुंमुखी समृद्ध्यभिवृद्धि के लिए उल्लेखनीय कार्य किया । संभवतः आमराज के पूर्व नागभट्ट (द्वितीय) एवं "अवनिजनाश्रय" तथा "दक्षिणभट" अर्थात् दक्षिणापथ का सुदृढ़ आधारस्तम्भ आदि उपाधियों से विभूषित पुलकेशिन ( चालुक्यराज विक्रमादित्य द्वितीय के द्वारा नियुक्त दक्षिण गुजरात के राज्यपाल ) जैसे देशभक्त योद्धाओं ने भारत पर किये गये अरबों के आक्रमण को पूर्णतः असफल कर अरब आक्रान्ताओं की शक्ति को अन्तिम रूप से नष्ट कर दिया । इस सम्बन्ध में आर. सी. मजूमदार आदि विद्वान् इतिहासज्ञों द्वारा संपादित -- 'दि क्लासिकल एज' का निम्नलिखित उल्लेख गौरवानुभूति के साथ पठनीय एवं मननीय है। ............These Arab expeditions took place between A. D. 724 and 738. But the success of the Arabs was short-lived, and they were defeated by the Pratihara king Nagabhatta and the Chalukya ruler of Lata (S. Gujarat) named Avanijanasruya Pulkeshiraj. The latter's heroic stand earned him the titles 'solid pillar of Dakshinapatha, and 'the repeller of the unrepellable.' The Gurjara king Jayabhatta IV of Nandipuri also claims to have defeated " क्लासिकल एज, पृ० ३१० Jain Education International --- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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