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________________ प्रामराज-नागभट्ट द्वितीय विक्रम की नौवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में प्राचार्य बप्पभट्टी का समकालीन एवं परम भक्त आम नामक प्रतिहारवंशीय राजा कन्नौज पर शासन करता था। पामराज अपने समय का महान योद्धा और जैन धर्म के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा रखने वाला राजा था। इसने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार एवं अभ्युदय के लिये जोजो कार्य किये उनका संक्षेप में प्राचार्य बप्पभट्टी के परिचय में उल्लेख किया जा चुका है । नागभट्ट (द्वितीय) और नागावलोक, इसी आमराज के अपर नाम थे। प्रामराज (नागभट्ट) के पिता का नाम यशोवर्मन था । यशोवर्मन गुजरात के लाट प्रदेश का बड़ा शक्तिशाली राजा था। आमराज का बाल्यकाल बड़ी ही संकटापन्न स्थिति में व्यतीत हुआ। इसका कारण यह था कि यशोवर्मन की एक रानी से जब प्रामराज का जन्म हया तो उसकी दूसरी रानी ने सौतिया डाह से प्रेरित हो यशोवर्मन को प्रामराज की माता के विरुद्ध भड़का कर उसे लाट राज्य से निकलवा दिया । आमराज की माता निराश्रय हो अपने शिशु को लिये वन्य जीवन व्यतीत करने लगी। बप्पभट्टी के गुरु प्राचार्य सिद्धसेन ने जब उसे जंगल में निराश्रित देखा तो मोढेरा ग्राम के जैन संघ को कहकर प्रामराज और उनकी माता के भरण-पोषण की व्यवस्था करवाई। कुछ ही समय पश्चात् प्रामराज की सौतेली माता की मृत्यु हो जाने पर यशोवर्मन ने अपनी रानी और पुत्र की खोज करवा उन्हें पुन: अपने राजप्रासाद में बुलवा लिया। विक्रम सं० ८६० के आस-पास राष्ट्रकूट वंश के दशवें राजा गोविन्द तृतीय (जगत्तुंग) ने यशोवर्मन पर आक्रमण कर उससे लाट प्रदेश छीनकर' अपने गुजरात राज्य में मिला लिया और अपने लघु भ्राता इन्द्र को गुजरात का राज्यपाल नियुक्त कर दिया। ___ गोविन्द तृतीय से पराजित होने और लाट प्रदेश के अपने राज्य के हाथ से निकल जाने पर यशोवर्मन कन्नौज की ओर बढ़ा और वहां के चक्रायुध नामक राजा को मारकर स्वयं कन्नौज के राज-सिंहासन पर बैठ गया । स्वाभिमानी आमराज की अपने पिता से किसी बात पर अनबन हो गई और वह कन्नौज से प्रछन्न रूप से निकल कर मोढेरा चला पाया। मोढेरा ग्राम के बाहर एक मन्दिर में मुनि बप्पभट्टी से उसकी भेंट हुई। बप्पभट्टी उसे अपने गुरु के पास ले गये और गुरु ने नाम आदि ' लाट विजय के सम्बन्ध में देखिये इसी ग्रन्थ का पृ० २६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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