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वत्सराज-गुर्जर-मालवराज
वीर निर्माण की तेरहवीं शताब्दी के अन्तिम चतुर्थ चरण से लेकर चौदहवीं शताब्दी की बीच की अवधि में जालौर के राजसिंहासन पर वत्सराज नामक बड़ा शक्तिशाली राजा हुआ, जिसने सुविशाल अवन्ती राज्य पर भी अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था । कुवलयमालाकार उद्योतनसूरि और हरिवंशपुराणकार प्राचार्य जिनसेन के उल्लेखानुसार विक्रम की ६ वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध काल में वत्सराज की भारत के शक्तिशाली राजाओं में गणना की जाती थी । राष्ट्रकूट वंशीय राजा कृष्ण ( प्रथम ) के दोनों पुत्र - गोविन्द द्वितीय ( वल्लभ) और ध्रुव इस मालवा तथा जालोर के राजा वत्सराज के समकालीन थे ।
वत्सराज का समय वस्तुतः राष्ट्रकूटवंशीय राजाओं का उत्कर्ष काल था । ई० सन् ७३०-७३५ के बीच राष्ट्रकूट वंश के शक्तिशाली राजा दन्तिदुर्ग ( ई० ७३०-७५३) ने बादामी के चालुक्य राजा कीर्तिवर्मा को पराजित कर लगभग सम्पूर्ण चालुक्य - राज्य को अपने राज्य में मिला मान्यखेट राज्य को अपने समय का सबसे शक्तिशाली राज्य बना दिया था । दन्तिदुर्ग के पश्चात् राष्ट्रकूट वंश के ७ वें राजा कृष्ण प्रथम और उसके दोनों पुत्रों - गोविन्द (द्वितीय) और ध्रुव-इन आठवें और 8वें राष्ट्रकूटवंशीय राजाओं ने भी राष्ट्रकूट राज्य की सीमाओं एवं शक्ति में उत्तरोत्तर अभिवृद्धि ही की ।
राष्ट्रकूट वंश के इस शक्ति-संवर्द्धन का दुष्प्रभाव वत्सराज पर पड़ा। अनुमानतः ई० सन् ७८७ के आस-पास राष्ट्रकूटवंशीय राजा ध्रुव ने मालवराज वत्सराज पर एक शक्तिशाली बड़ी सेना के साथ आक्रमण किया । वत्सराज उस युद्ध में ध्रुव से पराजित हुआ । वत्सराज को मालवे के राज्य से वंचित होने के साथसाथ मालवा छोड़कर मरु प्रदेश की ओर पलायन करने के लिये बाध्य होना पड़ा । ध्रुव की दुर्द्धर्ष सैन्य शक्ति को देखकर वत्सराज को विश्वास हो गया कि अब मालवा राज्य पर पुनः अपना आधिपत्य स्थापित करना तो दूर, मालवे में रहना भी उसके लिये सर्वनाश का कारण हो सकता है, अतः वह अपनी बची सेना के साथ अपने मालवा- गुजरात-राज्य की राजधानी जाबालिपुर (जालौर) लौट आया और वहीं रहकर जालौर का शासन करने लगा ।
कर्णाटक के मन्ने नामक ग्राम से, शानभोग नरहरियप्प नामक एक व्यक्ति के अधिकार में उपलब्ध शक सं० ७२४ के ताम्र - शासन में भी वत्सराज की ध्रुव से पराजय और मालवा छोड़कर मरुधर प्रदेश की ओर पलायन का निम्नलिखित रूप में उल्लेख है :
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