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________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ] [ ६४७ इनके दो शिष्यों-श्रीवत्स और बलदेव को संघ द्वारा ज्येष्ठार्या विरुद से विभूषित किया गया था, इससे अनमान किया जाता है कि उद्योतन सूरि के शिष्य भी परम प्रभावक थे।' उपरि लिखित गाथा संख्या १६ के द्वितीय चरण में उल्लिखित "महावारम्मि खत्तियो पयडो" को देखकर हठात् प्रत्येक पाठक को इस प्रकार की शंका होना सम्भव है कि उद्योतन कोई राजा नहीं अपितु साधारण क्षत्रिय ही थे। इस शंका का निवारण इस गाथा के तृतीय और चतुर्थ चरण को पढ़ते ही हो जाता है। शब्द-संयोजना थोड़ी क्लिष्ट है, इसलिये प्राकृत भाषा का सम्यक-बोध न होने की दशा में इस प्रकार की शंका का उत्पन्न होना सम्भव है। इसी कारण इसका स्पष्टीकरण आवश्यक है। ___ "उज्जोयणो ति णाम, तच्चिय परिभु जिरे तइया ।" इस अन्तिम गाथार्द्ध को प्रथम गाथार्द्ध के साथ पढ़ने से इस गाथा का अर्थ इस प्रकार होगा : "महाद्वार नामक नगर में न्याय, नीति और धर्म इन तीनों कर्तव्यों का अक्षुण्ण रूप से पालन करने वाला उद्योतन नामक लोक प्रसिद्ध क्षत्रिय था। वह उद्योतन क्षत्रिय उस समय उस महाद्वार राज्य का उपभोग कर रहा था, अर्थात् महाद्वार राज्य का राजा था।" इससे राजा उद्योतन के पौत्र और राजा बटेश्वर के पुत्र उद्योतनसूरि वस्तुतः राजकुमार थे, इसमें किसी प्रकार की शंका का अवकाश नहीं रह जाता। ' प्रस्तुत ग्रन्थ, जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग ३, पृष्ठ ४४७ देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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