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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ]
[ ६४५ कुवलय माला की प्रशस्ति अनेक दृष्टियों से बड़ी महत्त्वपूर्ण है, अतः उसके ऐतिहासिक महत्त्व के कतिपय अंश यहां उद्धत किये जा रहे हैं :
अत्थि पुहई - पसिद्धा, दोण्णिपहा दोणि चेय देसत्ति । तत्थथि पहं रणामेण उत्तरा बुह ---- जणाइण्णं ।।४।। सुइ-दिय-चारु-सोहा, वियसिय कमलाणणा विमल देहा । तत्थरिथ जलहि- दइया, सरिया ग्रह चन्दभायत्ति ।।५।। तोरम्मि तीय पयडा, पव्वइयारणाम रयण सोहिल्ला। जत्थ ट्टिएण भुत्ता, पुहई सिरि तोरराएण ।।६।। तस्स गुरु हरिउत्तो, पायरियो पासि गुत्त वंसायो । तोए रणयरीए दिप्पो, जेण णिवेसो तहिं काले ।।७।। तस्सविसिसो पयडो, महाकई देव उत्त - रणामो त्ति । ( तस्स उण) सिवचन्द गरणी, अह महयरो त्ति ॥८॥ सो जिरणवन्दण हेउ, कह वि भमन्तो कमेण सम्पत्तो। सिरि-भिल्लमाल-णयरम्मि, संठिो कप्प रुक्खो व्व ।।६।। तस्स खमासमण-गुणो, गामेण य जक्ख दत्त गरिणगामो। सीसो महइ-महप्पा, असि तिलोए वि पयड जसो ॥१० ।। तस्य य बहुया सीसा तव-वीरिय-वयण लद्धि संपण्णा । रम्मो गुज्जर-देसो जेहि कमो देवहरएहिं ।। ११ ।। णागो विदो मम्मड, दुग्गो पायरिय-अग्गिसम्मो य । छट्ठो बडेसरो छम्मुहस्स' वयण व्व से पासि ।। १२ ।। अागासवण्ण पयरें, जिणालयं तेरण णिम्मवियं रम्म । तस्स मुह दसणे विय, अवि पसमइ जो अहन्वो वि ।। १३ ॥ तस्स वि सीसो अण्णो, तत्तायरियो त्ति णाम पयड गुणो। प्रासि तव-तेय-णिज्जिय, पावतम्मोहो दिरणयरो व्व ।।. १४ ।। जो दूसम-सलिल-पवाह-वेग-हीरंत-गुण सहस्साण। सीलंग-विउल-सालो, लक्खण रुक्खो न्व रिणक्कंपो।। १५ ।। सीसेण तस्स एसा, हिरिदेवी-दिण्ण-दसण-मणेण । रइया कुवलयमाला, विलसिय-दक्खिरण-इन्धेण ॥ १६ ॥
[शिक्षा-गुरु ] दिण्ण जहिच्छिय-फलो, बहु-कित्ती-कुसुम-रेहिराभोनो। पायरिय वीरभददो, अथावरो कप्परुक्खो व्व ।। १७ ।। सो सिद्धन्तेण गुरु जुत्ती-सत्थेहि जस्स हरिभद्दो । बहु सत्थ गन्थ वित्थर-पत्यारिय-पयड-सव्वत्थो ।। १८ ।।
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