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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३
श्राचार ग्रंथों, स्तुत्यात्मक ग्रन्थों आदि अनेक विषयों के ग्रन्थों का निर्माण कर अपनी इस विपुल - विशाल ग्रन्थराशि से शाश्वत सत्य पर प्रकाश डाला ।
ऐतिहासिक दृष्टि से भी उद्योतन सूरि की यह गाथा बड़ी महत्त्वपूर्ण है । हरिभद्र सूरि के समय के सम्बन्ध में जो मान्यता भेद सुदीर्घकाल से चला आ रहा था, उस विवादास्पद समस्या का समुचित समाधान करने एवं उनके वास्तविक समय के निर्धारण में यह गाथा सर्वाधिक सहायक सिद्ध हुई है । इस गाथा से यह ऐतिहासिक तथ्य प्रकाश में आता है कि शक सं० ६६६ ( तदनुसार वीर नि० सं० १३०४, वि० सं० ८३४ और ई० सन् ७७७) में प्राकृत कथा साहित्य के लोकप्रिय ग्रन्थ “कुवलय माला” की रचना करने वाले उद्योतन सूरि ने हरिभद्र सूरि की सन्निधि में रहकर दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया और इस प्रकार हरिभद्रसूरि और उद्योतन सूरि गुरु-शिष्य होने के कारण कुछ समय के लिये समकालीन रहे हैं।
उद्योतन सूरि ने "कुवलय माला” की रचना जालोर नगर स्थित भगवान् ऋषभदेव के मन्दिर में, शालिवाहन शक संवत्सर के समाप्त होने में जब केवल एक दिन अवशिष्ट रहा था, तब चैत्र वदी १४ के दिन तृतीय प्रहर में, सम्पन्न की। उद्योतन सूरि ने यह सब विवरण प्रस्तुत करते हुए अपने ग्रन्थ कुवलय माला की प्रशस्ति में लिखा है कि जिस समय जालौर में श्रीवत्स राजा का राज्य था उस समय उन्होंने इस ग्रंथ की रचना की । पुन्नाट संघीय प्राचार्य जिन सेन ने अपने ग्रन्थ हरिवंश पुराण की प्रशस्ति के श्लोक संख्या ५२ में वत्सराज का नामोल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि वर्द्धमानपुर की नन्नराज वसति के भगवान् पार्श्वनाथ के मन्दिर में शक संवत्सर ७०५ में अपने ग्रन्थ हरिवंश पुराण की रचना सम्पन्न की। उस समय उत्तरी भारत पर इन्द्रायुध का, दक्षिणापथ पर राष्ट्रकूट वंशीय राजा कृष्ण के पुत्र श्री वल्लभ ( गोविंद द्वितीय) का, पूर्वी भारत पर अवन्ति राज वत्स - राज का और पश्चिमी भारत के सौराष्ट्र पर वीर जयवराह राजा का शासन था ।
हरिवंश पुराण की प्रशस्ति से उद्योतन सूरि के इस उल्लेख की पुष्टि के साथ-साथ यह एक ऐतिहासिक तथ्य प्रकाश में आता है कि शक सं० ७०५ तदनुसार वि० सं० ८४० में उपरि नामोल्लिखित सभी राजा समकालीन थे और अवन्ति के राजा वत्स का जालोर तक राज्य था । अवन्ति नरेश वत्सराज प्रतिहार वंशी
राजा था ।
कुवलयमाला की प्रशस्ति में ऐतिहासिक महत्त्व के और भी अनेक तथ्यों का उल्लेख किया गया । उन ऐतिहासिक तथ्यों में से हूणराज तोरराय (तोरमाण ) के पव्वइया (पार्वतिका) नामक राजधानी में रहते हुए शासन करने, तोरमाण के हारिल सूरि का भक्त उपासक बनने, हारिल गच्छ की उत्पत्ति, हारिल गच्छ के प्राचार्यों द्वारा किये गये जिनशासन प्रभावना के कार्यों का विवरण आदि तथ्यों का विस्तृत विवरण हारिल सूरि के एवं हारिल गच्छ के परिचय में दिया जा चुका है ।
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